उत्तराखंड हरिद्वारtehri garhwal badar singh dead body fount in haridwar

हरिद्वार में मिली टिहरी गढ़वाल के बुजुर्ग व्यक्ति की लाश, गांव में पसरा मातम

अगर पुलिस ज़रा सा एक्टिव होती, तो शायद टिहरी गढ़वाल के बादर सिंह को बचाया जा सकता था। अब परिवार में मातम का माहौल है।

उत्तराखंड: tehri garhwal badar singh dead body fount in haridwar
Image: tehri garhwal badar singh dead body fount in haridwar (Source: Social Media)

हरिद्वार: अगर थोड़ा सा पुलिस एक्टिव होती, तो शायद उस बुजुर्ग व्यक्ति को बचाया जा सकता था। हम बात कर रहे हैं टिहरी गढ़वाल के चंगोरा गांव के बादर सिंह की। 65 साल के बादर सिंह 10 नवंबर को 12 बजे से लापता थे। उन्हें आखिरी बार चंगोरा बैंड के पास देखा गया था। आखिर ऐसा क्या हुआ कि उनकी लाश हरिद्वार में पाई गई? आइए इस बारे में आपको जानकारी देते हैं।
दरअसल फेसबुक के माध्यम से उत्तराखंड के ही विनोद बिष्ट के द्वारा हमें ये खबर मिली थी। जब राज्य समीक्षा ने इस खबर की पड़ताल की तो मामला सही निकला। हमारी टीम ने बादर सिंह जी के बेटे सुनील से बातचीत की। सुनील ने बताया कि उनके पिता बादर सिंह आखिरी बार चंगोरा बैंड पर देखे गए थे। आगे जानिए पूरी कहानी।

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पड़ताल की तो पता चला कि वहां से आखिरी बस घनसाली तक जा रही थी। काफी दिन तक वो घर वापस नहीं लौटे तो उनके परिजनों ने पुलिस को इस बात की जानकारी दी। विडंबना देखिए...बादर सिंह के बेटे सुनील के मुताबिक पुलिस ने बताया कि ये लोकल पटवारी का मामला है और हम इसमें कुछ नहीं कर सकते। यहां से परिवारवालों की परेशानी और भी ज्यादा बढ़ गई। बादर सिंह इससे पहले मुंबई में कई सालों तक काम कर चुके थे। ऐसे में परिजनों को लगा कि शायद वो मुंबई की तरफ निकले हैं लेकिन इस बात के भी कुछ प्रमाण नहीं थे कि आखिर वो गए कहां हैं। दिन बीत रहे थे और परिवार की चिंता और भी ज्यादा बढ़ रही थी। ऐसे में उनके बेटों ने उनकी गुमशुदगी के पोस्टर छपवा दिए। टिहरी गढ़वाल से लेकर रिषिकेश और हरिद्वार तक पोस्टर छपवाए गए।

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हरिद्वार में कुछ पुलिसवालों ने परिजनों को बताया कि हरिद्वार पुलिस चौकी में भी एक पोस्टर लगाएं। जब परिवार वाले चौकी में पोस्टर लगाने गए तो उनके पैरों तले जमीन खिसक गई। दरअसल चौकी में ही एक पोस्टर पहले से लगा था, जिस पर किसी मृतक की फोटो लगी थी। जब परिजनों ने गौर से देखा तो वो लाश बादर सिंह की थी। बादर सिंह के बेटे सुनील ने राज्य समीक्षा को जानकारी दी कि पुलिस ने शव 12 नवंबर को बरामद किया था और 72 घंटे बाद कोई जानकारी नहीं मिलने पर अंतिम संस्कार खड़खड़ी नामक जगह पर करवा लिया गया। दुख की बात ये है कि उनके तीनों बेटे बाहर नौकरी करते हैं और उस दौरान छुट्टी लेकर घर आए थे। वो तीनों बेटे अपने पिता की अर्थी को कांधा भी नहीं दे सके।

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10 नवंबर को बादर सिंह गायब हुए और 28 नवंबर को पता चलता है कि वो इस दुनिया में नहीं रहे। अब सवाल ये है कि आखिर इसमें गलती किसकी है ? क्या पुलिस को उसी वक्त एक्शन में नहीं आना चाहिए था, जब उनसे इस गुमशुदगी की शिकायत की जा रही थी ? विनोद बिष्ट ने हम तक ये खबर पहुंचाई थी। उनके बारे में हमने जानने की कोशिश की, तो पता चला कि वो जापान में होटल व्यवसाय करते हैं और उत्तराखंड के लिए काफी सजग हैं। सवाल ये भी तो है कि जब सात समुंदर पार बैठा कोई शख्स सचेत होकर इस तरह की खबर दे सकता है तो आखिर स्थानीय पुलिस क्यों सचेत नहीं होती ? हो सकता है कि ये एक मामूली सी खबर हो, लेकिन अगर थोड़ी सी सावधानी और थोड़ा वक्त पर काम किया जाता, तो शायद किसी की जान बच सकती थी।