उत्तराखंड aipan the tredition of uttarakhand

ऐपण: उत्तराखंड की सदियों पुरानी परंपरा, जिसके बिना अधूरा है हर शुभ काम!

कला, संस्कृति को सहेजने में उत्तराखंडियों का कोई सानी नहीं। ऐसी ही एक कला है ऐपण। आइए इस बारे में जानिए और अपनी जड़ों से जुड़िए।

uttarakhand culture: aipan the tredition of uttarakhand
Image: aipan the tredition of uttarakhand (Source: Social Media)

: रंगोली भारत की प्राचीन सांस्कृतिक परंपरा और लोक-कला है। अलग अलग प्रदेशों में रंगोली के नाम और उसकी शैली में भिन्नता हो सकती है लेकिन इसके पीछे निहित भावना और संस्कृति में समानता है। इसकी यही विशेषता इसे विविधता देती है और इसके विभिन्न आयामों को भी प्रदर्शित करती है। रंगोली को उत्तराखंड में ऐपण तो उत्तर प्रदेश में चौक पूरना, राजस्थान में मांडना, बिहार में अरिपन, बंगाल में अल्पना, महाराष्ट्र में रंगोली, कर्नाटक में रंगवल्ली के नाम से जाना जाता है। पूरे भारत में इसे अलग अलग नाम है लेकिन इन्हें त्यौहारों, शुभ कार्यों व्रत के दौरान ही बनाया जाता है।उत्तराखंड में ऐपण का अपना एक अहम स्थान है। लोक कलाओं को सहेजने में कुमाऊंवासी किसी से कम नहीं है। यही वजह है कि यहां के लोगों ने सदियों पुरानी लोक कलाओं को आज भी जिंदा रहा है।

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ऐपण को कुमाऊं में प्रत्येक शुभ कार्य के दौरान पूरी धार्मिक आस्था के साथ बनाया जाता है। त्यौहारों के वक्त इसे घर की देली, मंदिर, घर के आंगन में बनाने का विषेश महत्व है। ऐपण यानि अल्पना एक ऐसी लोक कला, जिसका इस्तेमाल कुमाऊं में सदियों से जारी है। यहां ऐपण कलात्मक अभिव्यक्ति का भी प्रतीक है। इस लोक कला को अलग-अलग धार्मिक अवसरों के मुताबिक बनाया किया जाता है। शादी, जनेऊ, नामकरण और त्योहारों के अवसर पर हर घर इसी लोक कला से सजाया जाता है। ज्योतिषियों के मुताबिक ऐपण हर अवसर के मुताबिक बनाए जाने वाली कला है। आज भी बगैर ऐपण के कोई शुभ कार्य नहीं होते हैं। ऐपण में सम बिंदु और विषम रेखाओं को शुभ माना गया है। देखने में भले ही ये ऐपण आसान से नजर आते है, लेकिन इन्हें बनाने में ग्रहों की स्थिति और धार्मिक अनुष्ठानों का खास ध्यान रखा जाता है।

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गणेश पूजन के लिए स्वास्ति चौकी, मातृ पूजा में अष्टदल कमल, षष्ठी कर्म, नामकरण में गोल चक्र में पांच बिंदु (पांच देवताओं के प्रतीक), देवी पूजा में कलश की चौकी, शादी विवाह में धूलि अर्घ्य चौकी, कन्या चौकी, यज्ञोपवीत में व्रतबंध की चौकी, शिवार्चन में शिव चौकी, देली पर द्वार देवी के प्रतीक ऐपण, दीपावली पर लक्ष्मी चौकी, लक्ष्मी के पाए आदि बनाई जाती हैं। पुराने दौरे में ऐपण बनाने में चावल और गेरू का इस्तेमाल किया जाता था। लेकिन बदलते वक्त के साथ आज इनकी जगह पेंट और ब्रूश ने ले लिया है। यही नहीं त्योहारों के मौसम में अब तो बाजारों में रेडीमेड ऐपण भी मिलने लगे हैं, जो समय तो बचाते ही हैं और साथ ही साथ खुबसूरत डिजाईन में होते है। ऐसा नहीं है कि यह कला सिर्फ उत्तराखंड तक ही सीमित है। देश के हर हिस्से में रहने वाले कुमाऊंनी के घर पर आपको ऐपण देखने को मिल जाएंगे। इसके साथ ही सात समुंदर पार रहने वाले कुमाऊंनी विदेशी धरती में रहते हुए भी इस कला और अपनी संस्कृति से जुड़े हुए है।