उत्तराखंड Satish lakhera blog on mns

मिलिट्री नर्सिंग सर्विस की अफसर बेटियां..देश की महिला रक्षामंत्री से सम्मान की उम्मीद

आज एमएनएस (मिलिट्री नर्सिंग सर्विस) का 93वां स्थापना दिवस है। इस मौके पर स्वतंत्र पत्रकार और स्तंभकार सतीश लखेड़ा का ये दमदार ब्लॉग पढ़िए।

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Image: Satish lakhera blog on mns (Source: Social Media)

: सेवा का दूसरा नाम नर्सिंग है। किसी रोगी से ही उनकी उपयोगिता पूछी जा सकती है कि किस तरह संपूर्ण उपचार पद्धति का उनकी निगरानी में वह स्वास्थ्य लाभ करता है। भारतीय सेना में MNS को ही लें जहां नर्सिंग सेवा का स्तर विश्व स्तरीय है। सेना में दुर्गम क्षेत्रों, युद्ध क्षेत्रों और सीमा क्षेत्रों में सैनिकों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर भारतीय रक्षा पंक्ति में अपना योगदान नर्सिंग सेवा की अधिकारी देती आ रही है किंतु यहां भी नर्सिंग सेवा पुरुष प्रधान मानसिकता की शिकार हैं। सेना में मिलिट्री नर्सिंग सर्विस एक पृथक कोर के रूप में कार्य कर रही है किन्तु तकनीकी आधार पर आर्मी मेडिकल कोर के अधीन ही संचालित है। सेना की नर्सिंग कोर न पृथक इकाई की तरह संचालित होती हैं और न वे AMC (आर्मी मेडिकल कोर ) की तरह अपने निर्णय ले सकती है। जहां पूरी सेना MNS को सम्मान की दृष्टि से और बराबर की दृष्टि से देखती है और सेना अस्पतालों में उनकी उपयोगिता का महत्व समझती हैं वहीं AMC के अफसरों द्वारा महिलाओं को कमतर आंकने के प्रयासों के चलते MNS को हतोत्साहित किया जाता रहा है, जिस कारण तेजी से नर्सिंग अधिकारी सेना छोड़ रही हैं।

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आश्चर्य है कि 1926 में गठित MNS कोर आज भी अपने अस्तित्व को जूझ रही है। इन्हें बराबरी का स्तर मिले ना मिले इसके लिए आर्मी मेडिकल कोर की पुरुष प्रधान मानसिकता सदैव आड़े आती रही है। जहां सेना के तीनों अंगों में महिलाएं परचम गाढ़ रही हैं, सेना की कॉम्बैट फोर्स में आ रही हैं, फाइटर पायलट बन रही हैं, आर्मी, नेवी, एयरफोर्स में उनकी दमदार उपस्थिति है। नेवी की केवल महिला अधिकारियों का दल विश्व का चक्कर काट आया है। किन्तु सर्वाधिक काम के घण्टों में सेवा देने वाली MNS सम्मान के निचले पायदान है, ऐसे में नर्सिंग सर्विस की अधिकारियों की मनः स्थिति समझी जा सकती है। भारत की रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण के सम्मुख अभी मामला पंहुचा है। आजादी के बाद से लेकर अब तक पहली बार देश में रक्षा मंत्रालय एक महिला नेता के अधीन है, जो कि बहुत संवेदनशील और त्वरित कार्य करने वाली मंत्री के रूप में अपनी पहचान रखती है।

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नर्सिंग अफसरों के परिवार इस विषय में महामहिम राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के संज्ञान में लाने का प्रयास करते रहे हैं। तेजी से MNS का सेना छोड़ना सेना के लिए चिंता का सबब है और रक्षामंत्री के संज्ञान में यह विषय है। द्वितीय विश्व युद्ध में युद्ध बंदी की पीड़ा झेलने वाली MNS आज आजाद भारत में अपने अपेक्षित सम्मान को प्राप्त नहीं कर पा रही हैं। यह अब तक की सरकारों पर प्रश्न चिन्ह भी बनता है।निरन्तर अपने स्तर पर संघर्ष करने वाली MNS अफसर की आवाज AMC के पिंजरे से बाहर नहीं आ पाती हैं। युद्ध क्षेत्र में ,विदेश में शांति सेना (यूएन मिशन) में, कारगिल युद्ध हो या अन्य ऑपरेशन हर स्तर पर उपस्थिति देने वाली MNS अधिकारियों का अभी तक बराबरी का दर्जा न पाना सेना के भीतर बैठे नीति नियंताओ पर सवालिया निशान है जो आजादी के बाद से लेकर अब तक 5000 संख्या वाली इस कोर को सम्मान नहीं दे पाए। आश्चर्य होगा कि सेना की अन्य कोर जैक ब्रांच, एजुकेशन कोर, ऑर्डनेंस कोर की महिला अधिकारी कॉम्बैट फोर्स के बजाय सर्विस फोर्सेज की कैटेगरी में आती है।

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इन महिला अधिकारियों को युद्ध क्षेत्र फील्ड और संवेदनशील क्षेत्र में तैनाती नहीं दी जाती और उन्हें सैन्य अधिकारी माना जाता है जबकि एमएनएस को नहीं। संवेदनशील मेडिकल कोर के भीतर ऐसी क्रूर सोच का उदाहरण शायद ही कहीं मिले। सेना में AMC द्वारा MNS का मनोबल तोड़ने के नित नये उपक्रम मानवाधिकारों को भी मात देते हैं। अन्य सेना के अधिकारियों की तरह MNS की भी OG(ऑलिव ग्रीन) वर्दी थी। AMC के मुख्यालय ने इसे हटा कर बेज सफारी कर दिया, क्योंकि AMC अफसर उनकी बराबरी बर्दाश्त नहीं कर पा रहे थे। वर्दी ही नही ड्यूटी के घण्टे में भी भारी भेदभाव है। बेटी -बचाओ बेटी-पढ़ाओ और महिला सशक्तिकरण जैसे अभियान जहां सरकार चला रही हैं। महिलाओं के प्रति मोदी सरकार की संवेदनशीलता इस स्तर तक है कि प्रधानमंत्री लालकिले की प्राचीर से महिलाओं के सम्मान में खुले में शौच से मुक्ति के लिये शौचालय के निर्माण का देश से आह्वान करते हैं। अब यह विषय निर्णायक स्तर पर है।

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MNS की अवकाश प्राप्त अधिकारी निरंतर इस लड़ाई को लड़ रही है, यह केवल भेदभाव का विषय नहीं है यह उस खतरनाक सोच का उदाहरण है जहां भगवान का दूसरा रूप माने जाने वाले डाक्टरी पेशे के AMC मुख्यालय के अधिकारी इस बराबरी की लड़ाई में सबसे बड़े अवरोध है। सेना के नर्सिंग कॉलेजों का विज्ञापन भी छलावा प्रतीत होता है, जिसमें कमीशंड ऑफिसर हेतु आमंत्रित कर दिया जाता है और तैनाती दोयम दर्जे पर होती है। सेना के भीतर सेना के साथ काम करने वाली कोर को ऑक्जिलरी फोर्स मानकर उसे सम्मान और हक दोनों से दूर करने का उपक्रम शर्मनाक है। आश्चर्य होता है कि एमएनएस आर्मी एक्ट में नहीं आती अर्थात उन पर सेना के सभी कानून लागू तो होते हैं उनसे सेवा के लिए पूर्ण समर्पण की अपेक्षा की जाती है ( जो स्वाभाविक है )। नियम 39A (बिना छुट्टी उपस्थिति) की कार्यवाही सेना के नियमों के तहत होती है। नियम 69 (वरिष्ठों का सम्मान और गोपनीयता) लागू होता है ।विषय नियमों से बंधने का नहीं बल्कि सेना द्वारा एमएनएस को बराबरी का दर्जा देने का है। वेतन और प्रमोशन में भी भेदभाव MNS का मनोबल तोड़ता है। यही कारण है कि सेना की सबसे बड़ी महिला कोर की अधिकारी तेजी से सेना छोड़ रही हैं। बहरहाल यह मामला अब बड़े स्तर पर सुनवाई की स्थिति में है जहां निसंदेह 5000 संख्या की महिला अधिकारी जो निरंतर अपने लिए संघर्ष कर रही थी, उन्हें उम्मीद जगी है कि उनके हित में कोई फैसला जल्द होगा।