देहरादून: सबसे पहले हम घुमक्कड़ पहाड़ी नाम से मशहूर सीनियर रिपोर्टर पंकज पंवार का शुक्रिया अदा करते हैं, जो वो इस खूबसूरत रिपोर्ट को लोगों के सामने लेकर आए हैं। सालों पहले पहाड़ के गांव-गांव में घराट होते थे, जिन्हें घट भी कहा जाता है। इन्हें पहाड़ की लाइफ लाइन कहा जाए तो गलत न होगा, पर आधुनिकता की दौड़ में सब कुछ छूटने लगा तो घराट भी पीछे छूट गए। घराटों को पनचक्की भी कह सकते हैं, जब तक गांवों में बिजली नहीं आई थी, तब तक घराटों में ही आटा पीसने का काम हुआ करता था। ये पानी के वेग से चलते थे, इसीलिए इन्हें घट या घराट कहते हैं। अब तो गांवों में भी घराट विरले ही देखने को मिलते हैं, लेकिन देहरादून में एक घराट आज भी पूरी शान से संचालित हो रहा है। अंग्रेजों के जमाने में तैयार इस घराट ने सौ साल का सफर पूरा कर लिया है। इसे हम देहरादून का एकमात्र घराट इसलिए कह रहे हैं, क्योंकि इसके अलावा देहरादून में कोई घराट नहीं बचा। घुमक्कड़ पहाड़ी के नाम से सीनियर रिपोर्टर पंकज पंवार ने इस घराट पर एक स्पेशल रिपोर्ट तैयार की है। वास्तव में आपको ये रिपोर्ट जरूर देखनी चाहिए। आगे देखिए वीडिय़ो
ये भी पढ़ें:
यह भी पढ़ें - उत्तराखंड: शराबी पिता ने 2 साल की बेटी को 30 हजार में बेचा, मां ने पुलिस से लगाई गुहार
इसका वीडियो आपको दिखाएंगे, लेकिन उससे पहले घराट के बारे में थोड़ी और बातें जान लेते हैं। इस घराट तक पहुंचने के लिए आपको दून के रायपुर रोड से होते हुए मालदेवता की तरफ जाना होगा। यहीं पर स्थित है दून का सौ साल पुराना घराट। ब्रिटिश शासनकाल में अंग्रेजों ने यहां सिंचाई के लिए नहरें बनवाईं थीं। ये घराट भी उसी वक्त बनवाया गया था। ताकि लोगों को गेहूं, मंडुवा और मसाले पिसाने के लिए दूसरी जगह न जाना पड़े। बीते वर्षों में दून के ज्यादातर घराट खंडहर में तब्दील हो चुके हैं, लेकिन मालदेवता स्थित घराट में आज भी लोग गेंहू, मंडुवा और मसाले पिसाने के लिए आते हैं। घराट का संचालन जयसिंह पंवार कर रहे हैं। वो बताते हैं कि इस घराट का दोबारा संचालन साल 2018 में शुरू किया गया। इसमें पिसा आटा ठंडा होता है। जिसमें स्वाद भी होता है और पौष्टिक तत्व भी बरकरार रहते हैं। यही वजह है कि लोग दूर-दूर से घराट में अनाज और मसाले पिसवाने पहुंचते हैं। आगे देखिए वीडियो
ये भी पढ़ें:
यह भी पढ़ें - ऋषिकेश से दुखद खबर...गुस्साए हाथी ने युवक को पटक-पटक कर मार डाला
घराट पानी के वेग से चलता है, इसलिए ये प्रकृति के संरक्षण के लिए भी जरूरी है। चलिए अब आपको देहरादून के सौ साल पुराने घराट पर तैयार शानदार वीडियो रिपोर्ट दिखाते हैं। वी़डियो साभार- घुम्मकड़ पहाड़ी, पंकज पंवार