उत्तराखंड चम्पावतChampawat youth learn bulb making from youtube

पहाड़ के इस नौजवान ने यूटयूब से सीखा बल्ब बनाना, अब हर महीने हजारों रुपये कमाता है

शेखर के बल्ब प्रोडक्शन से उनके साथ-साथ गांव के कई बेरोजगार युवाओं की जिंदगी रोशन हो रही है...

Champawat: Champawat youth learn bulb making from youtube
Image: Champawat youth learn bulb making from youtube (Source: Social Media)

चम्पावत: इंटरनेट...आज के युवा की मूलभूत जरूरतों में से एक। ये एक जरूरत, उनकी हर जरूरत पर भारी है। यूं तो इंटरनेट और सोशल मीडिया की लत के कई नुकसान हैं, लेकिन फायदे भी कम नहीं। बस जरूरत है तो इसकी अच्छी बातों को अपनाने की। चंपावत के रहने वाले शेखर ने भी यूट्यूब का ऐसा ही शानदार इस्तेमाल किया। कुछ समय पहले तक गांव का ये युवा बेरोजगार था। चाहता तो अपने साथियों की तरह गांव छोड़कर शहर चला जाता, पर शेखर ने गांव में रहकर ही स्वरोजगार की राह खोज ली, और जरिया बना यूट्यूब। वही यूट्यूब जिसका इस्तेमाल ज्यादातर लोग फिल्में, म्यूजिक वीडियो देखने के लिए करते हैं। पर ये एक ट्रेनिंग स्कूल से कम नहीं है। शेखर सिंह ने यूट्यूब के जरिए एसीडीसी यानि अल्टरनेट करंट एंड डॉयरेक्ट करंट चार्जिंग बल्ब बनाना सिखा। केवल सीखा ही नहीं इसे स्वरोजगार की तरह अपनाया भी। आगे पढ़िए

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आज शेखर के बल्ब प्रोडक्शन से उनकी ही नहीं गांव के कई बेरोजगार युवाओं की जिंदगी रोशन हो रही है। चंपावत में एक जगह है सुयालखर्क, शेखर सिंह इसी गांव में रहते हैं। उन्होंने अपनी फुटवियर की दुकान में बल्ब बनाने का कारखाना खोला है। जहां डिमांड के आधार पर बल्ब तैयार किये जाते हैं। बल्बों की बिक्री से शेखर हर महीने 20 से 25 हजार रुपये तक कमा लेते हैं। शेखर अभी सिर्फ 20 साल के हैं। वो बताते हैं कि मैंने बल्ब बनाने के लिए कहीं बाहर से ट्रेनिंग नहीं ली। यूट्यूब के जरिए बल्ब बनाना सिखा और इसे रोजगार का जरिया बना लिया। शेखर बीए के स्टूडेंट हैं। वो अब तक हजारों बल्ब बेच चुके हैं। एसीडीसी बल्ब टिकाऊ होते हैं, इसीलिए लोग इन्हें हाथोंहाथ खरीद लेते हैं। बल्ब बनाने के लिए शेखर कच्चा माल दिल्ली से लाते हैं। वो बताते हैं कि एक बल्ब बनाने में करीब 170 रुपये की लागत आती है। तैयार बल्ब 250 रुपये में बिकता है, यानि हर बल्ब में 80 रुपये का मुनाफा है। वो एलईडी बल्ब भी बनाते हैं। एसीडीसी बल्ब की खासियत भी आपको बताते हैं। एसीडीसी बल्ब लाइट रहने के दौरान चार्ज होता है और लाइट जाते ही अपने आप रोशनी देने लगता है। इसे बिना बिजली के भी इस्तेमाल किया जा सकता है। शेखर सिंह का काम अच्छा चल रहा है, अब वो गांव के दूसरे युवाओं को बल्ब बनाने की ट्रेनिंग दे रहे हैं।