उत्तराखंड रुद्रप्रयागStory of Fwa Bagha Re Leopard from Rudraprayag

फ्वां बाघा रे...रुद्रप्रयाग के दुर्दांत नरभक्षी बाघ की सच्ची कहानी..आप भी जानिए

लोकगीत फ्वां बाघा रे रुद्रप्रयाग के उस नरभक्षी बाघ की रोमांचक दास्तान बयां करता है, जिसने 8 साल में 125 लोगों को अपना शिकार बनाया था...

Story of Fwa Bagha Re: Story of Fwa Bagha Re Leopard from Rudraprayag
Image: Story of Fwa Bagha Re Leopard from Rudraprayag (Source: Social Media)

रुद्रप्रयाग: फ्वां बाघा रे...ये लोकगीत आपने जरूर सुना होगा। दरअसल ये सिर्फ एक गीत नहीं है, बल्कि रुद्रप्रयाग के उस खूंखार नरभक्षी गुलदार की कहानी है, जिसने आठ साल के भीतर 125 लोगों को अपना शिकार बना लिया था। दुनिया के बड़े शिकारी भी इस नरभक्षी गुलदार का खात्मा नहीं कर सके। नरभक्षी को मारने के लिए जितनी योजनाएं बनतीं, नरभक्षी उन योजनाओं को धता बताकर बच निकलता। राज्य समीक्षा आपके लिए इस नरभक्षी गुलदार की सच्ची कहानी लेकर हाजिर हुआ है। बात सौ साल पहले की है। 9 जून 1918 से लेकर 14 अप्रैल 1926 तक ये गुलदार गढ़वाल के लिए आतंक का सबब बना रहा। माना जाता है साल 1918 की महामारी में मारे गए कुछ लोगो की लाशों को बिना जलाये छोड़ दिया गया था, इन्हीं को खाकर गुलदार यानि बाघ नरभक्षी बन गया। पहले उसने एक चरवाहे लड़के को मारा बाद में एक औरत का शिकार किया। मौतों का सिलसिला चल निकला। बाघ एक के बाद एक लोगों की जान लेने लगा। कुख्यात बाघ के किस्से अखबारों में छपने लगे। बाघ की वजह से अंधविश्वासी लोगों ने एक साधु को भी जलाकर मार डाला, दरअसल लोग सोचते थे कि नरभक्षी बाघ की आत्मा इसी साधु के भीतर है, पर गुलदार लोगों की जान लेता रहा।

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साल 1921 में दो अंग्रेज अफसरों ने बाघ पर 7 गोलियां दागीं, पर बाघ फिर भी जिंदा रहा। एक बार वो 7 हफ्ते तक पिंजरे में फंसा रहा, फिर भी खुद को आजाद कराकर भाग निकला। बाद में मशहूर शिकारी जिम कॉर्बेट क्षेत्र में आए, तब लोगों को लगा कि उन्हें नरभक्षी से मुक्ति मिल जाएगी, पर ये आसान ना था। जिम कॉर्बेट कई बार असफल हुए। इसी दौरान जिन ट्रैप की मदद से एक बाघ को मार गिराया गया, पर बाद में पता चला कि ये वो बाघ नहीं है। इसी बीच नरभक्षी ने पास के गांव में एक और महिला को मार दिया। साल 1926 में जिम कॉर्बेट फिर गढ़वाल आए। जिन ट्रैप से लेकर सायनाइड ट्रैप तक लगाया गया, पर गुलदार को कुछ ना हुआ। पिंजरे में जहरीला मांस तक रखा गया, पर गुलदार ने उसे छुआ भी नहीं। एक बार तो नरभक्षी अपने लिए बिछाए गये 80 पौंड वजन के जिन-ट्रैप को अपने साथ काफी दूर तक घसीटता ले गया और आखिर में आजाद हो गया। कई बार मिली असफलता के बाद साल 1926 में जिम कॉर्बेट ने दुर्दांत बाघ को मार डाला। गढ़वाल में दहशत का सबब ने इस बाघ की लंबाई 7 फुट 10 इंच थी। आर्सेनिक जहर खाने की वजह से उसकी जीभ काली पड़ चुकी थी। नरभक्षी को मारने के बाद रुद्रप्रयाग में जिम कॉर्बेट का स्वागत युद्ध नायक की तरह हुआ। लोगों ने उनके रास्ते पर फूल बिछाए, उनका आभार प्रकट किया। पहाड़ के लोगों से मिले अपनेपन और प्यार का जिक्र जिम कॉर्बेट ने अपनी किताब में भी किया है।