: पहाड़ की बेटियां पहाड़ सा हौसला रखती हैं और इसी हौसले की बदौलत वो सफलता की राह पर चल पड़ी हैं। ये बेटियां कर्मठ हैं और अपने काम को लेकर ईमानदार भी। बेटियां अब घरों की दहलीज छोड़कर जीत के सफर पर चल पड़ी हैं। ऐसी ही जुझारू और कर्मठ बेटी है पिथौरागढ़ की गीता ठाकुर...गीता में गजब की हिम्मत है और वो अब पोर्टर बन कैलाश यात्रियों की सेवा कर रही हैं। गीता धारचूला की रहने वाली हैं। वो जो काम कर रही हैं, वो आसान नहीं है। अब तक यात्रा रूट पर केवल पुरुष पोर्टरों का ही दबदबा रहा करता था, पर गीता इस मिथ को तोड़ रही हैं। गीता जिप्ति गांव की रहने वाली हैं, जो कि आपदाग्रस्त गांव है। पोर्टर का काम करने वाली वो प्रदेश की पहली महिला हैं। ये काम उन्होंने इसी साल शुरू किया। उन्होंने पहली बार आदि कैलाश और ओम पर्वत के सातवें दल के यात्री कर्नाटक निवासी बंगारू स्वामी और उनकी बेटी सुंदनी को सफल यात्रा कराई।
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यात्रा दल में 22 यात्री थे। जिनके साथ गीता ने धारचूला से नजंग, नजंग से बोलायर और मालपा की यात्रा की। इसके बाद बूंदी, गुंजी होते हुए ओम पर्वत गईं। और जानते हैं इस दौरान उन्होंने कुल 140 किलोमीटर की दूरी पैदल तय की। चलिए पहाड़ की इस साहसी बेटी के बारे में थोड़ा और जानते हैं। गीता के माता-पिता खेती करते हैं। गीता के 6 भाई और 1 बहन है। वो धारचूला में किराये के कमरे में रहती हैं और मेहनत-मजदूरी कर अपनी एक बहन और भतीजी की पढ़ाई का खर्चा उठा रही हैं। गांव से निकलकर पोर्टर बनने तक का सफर गीता के लिए आसान नहीं था। गांव वालों ने कई बातें की, गीता को ताने दिए, उनके पोर्टर बनने का विरोध किया। पर जब वो यात्रियों को सफल यात्रा करा कर लौटीं तो सबके मुंह बंद हो गए। गीता के साथ यात्रा पर गए यात्रियों ने भी उनकी खूब तारीफ की। सच कहें तो गीता जैसी युवतियां ही महिला सशक्तिकरण की असली मिसाल हैं। जो कि अपनी मेहनत से अपने भाग्य की रचना खुद कर रही हैं। ऐसी जुझारू बेटियों को राज्य समीक्षा का सलाम...