उत्तराखंड देहरादूनpanchayati raj election update in uttarakhand

उत्तराखंड में 2 से ज्यादा बच्चों वाले नहीं लड़ेंगे चुनाव...अल्पसंख्यक समुदाय की बेचैनी बढ़ी?

उत्तराखंड में अब दो से ज्यादा बच्चे वाले उम्मीदवार पंचायत चुनाव नहीं लड़ सकेंगे, कैबिनेट के इस फैसले ने अल्पसंख्यकों की बेचैनी बढ़ा दी है..

उत्तराखंड पंचायत इलेक्शन: panchayati raj election update in uttarakhand
Image: panchayati raj election update in uttarakhand (Source: Social Media)

देहरादून: लोकसभा चुनाव खत्म होने के बाद उत्तराखंड में पंचायत चुनाव की तैयारी जोरों पर है। हाल ही में त्रिवेंद्र मंत्रिमंडल ने पंचायत चुनाव के दावेदारों को लेकर अहम फैसला लिया है। इसके तहत जिन उम्मीदवारों के दो से ज्यादा बच्चे होंगे, वो पंचायत चुनाव नहीं लड़ सकेंगे। इस पहल का उद्देश्य लोगों को जनसंख्या नियंत्रण के लिए प्रेरित करना है। इसके साथ ही उम्मीदवारों की शैक्षिक योग्यता भी निर्धारित कर दी गई है। पर प्रदेश सरकार के इस फैसले ने अल्पसंख्यक समुदाय की बैचेनी बढ़ा दी है। इस वक्त प्रदेश की कुल आबादी का 16 फीसद हिस्सा अल्पसंख्यक वर्ग से आता है, जो कि नए विधेयक का विरोध कर रहे हैं। मुस्लिम समुदाय का साफ कहना है कि प्रदेश सरकार इस विधेयक के जरिए अल्पसंख्यक समुदाय को टारगेट कर रही है। इससे समुदाय के प्रतिनिधित्व पर सीधा असर पड़ेगा, जो कि सही नहीं है। खुद को मुस्लिम समुदाय का रहनुमा बताने वाले लोगों का कहना है कि इस विधेयक को पारित करते वक्त सरकार ने अल्पसंख्यक समुदाय के प्रतिनिधियों से चर्चा तक नहीं की। ऐसा लगता है कि ये बिल धार्मिक एजेंडे को ध्यान में रख लाया गया है। प्रदेश सरकार की मंशा ठीक नहीं है। एक तो पंचायतों को अधिकार नहीं दिए जा रहे। उस पर वर्ग विशेष को उसके अधिकारों से वंचित करने की साजिश रची जा रही है।

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उत्तराखंड के नैनीताल, देहरादून, ऊधमसिंहनगर और हरिद्वार समेत कई जिलों में मुस्लिमों की अच्छी खासी तादाद है, जो कि सरकार के इस फैसले को सही नहीं मान रहे। इनका पंचायतों में भी सीधा दखल रहता है, साथ ही दावेदारी भी, यही वजह है कि नया विधेयक इन लोगों के गले नहीं उतर रहा। दो बच्चों के पंचायत चुनाव ना लड़ने के फैसले से कई पुराने और नए उम्मीदवारों की दावेदारी खतरे में पड़ गई है। वहीं कई लोग प्रदेश सरकार के इस फैसले की तारीफ भी कर रहे हैं। पार्टी प्रवक्ता शादाब शम्स कहते हैं कि इस फैसले में बीजेपी का कोई छुपा हुआ एजेंडा नहीं है। ये केवल एक शुरुआत भर है। इसके बाद विधानसभा और संसदीय चुनावों में भी सुधार किए जा सकते हैं। बीजेपी ने ये कदम राज्य और देश के हित में उठाया है। कोई भी समझदार आदमी इसका विरोध नहीं करेगा।