उत्तराखंड SDRF SEARCHING OLD WAY OF BADRINATH AND KEDARNATH

बदरीनाथ-केदारनाथ के पौराणिक रास्‍ते की खोज शुरू..जल्द मिलेगी दुनिया को अच्छी खबर

पौराणिक काल में श्रद्धालु प्राचीन पैदल रास्ते से होकर ही बदरी धाम पहुंचा करते थे, लेकिन सड़क सेवा की शुरुआत होने के साथ ही ये रास्ते भी खो गए।

उत्तराखंड: SDRF SEARCHING OLD WAY OF BADRINATH AND KEDARNATH
Image: SDRF SEARCHING OLD WAY OF BADRINATH AND KEDARNATH (Source: Social Media)

: सातवीं-आठवीं सदी में गढ़वाल के पहाड़ों पर घनघोर जंगलों के बीच पैदल रास्ता तय करते हुए आदि गुरु शंकराचार्य ने बद्रीनाथ में बद्रिकाश्रम ज्योर्तिपीठ और केदारनाथ में ज्योतिर्लिंग की स्थापना की थी। सदियों से श्रद्धालु भी इन्हीं पैदल रास्‍तों पर चलते हुए इन धामों के दर्शन करते आ रहे थे। बीते कुछ दशकों में सड़कें बन गई तो श्रद्धालु समय और शक्ति के लिहाज से खर्चीले इन पारंपरिक पैदल मार्गों से दूर हो गए। अब तो बदरीनाथ धाम तक सीधी सड़क जाती है और केदारनाथ तक भी हेलीकॉप्टर की पहुंच है। ये बात भी सच है कि 70 साल पहले तक भी श्रद्धालु पैदल मार्गों से यात्रा करके बद्रीनाथ और केदारनाथ धाम पहुंचते थे। सड़कें बन जाने के बाद ये रास्ते धीरे-धीरे विलुप्त हो गए। लेकिन अब उन रास्तों को फिर से खोजने की पहल शुरू की गई है। ये जिम्मा लिया है एसडीआरएफ ने। आगे पढ़िए शानदार खबर...

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राज्य आपदा मोचन बल यानि एसडीआरएफ उत्तराखंड राज्य के लिए लाइफ लाइन साबित हो रही है, अब तक जहां एसडीआरएफ को आपदा के वक्त राहत और बचाव कार्य के लिए जाना जाता था, वहीं अब एसडीआरएफ की टीम इन दिनों बदरीनाथ यात्रा के पैदल रास्तों को भी खोजने में जुटी है, ये एक शानदार पहल है। इससे इन क्षेत्रों में एडवेंचर टूरिज्म को बढ़ावा मिलेगा, साथ ही आपदा के वक्त इन रास्तों का इस्तेमाल खोज एवं बचाव कार्य के लिए किया जा सकेगा। पैदल यात्रा मार्गों की तलाश के लिए ग्लोबल पोजीशनिंग सिस्टम (जीपीएस) का सहारा भी लिया जा रहा है। एसडीआरएफ की 11 सदस्यीय टीम चमोली, मठ, छिनका, दुर्गापुर से छोटी काशी हाट होते हुए पीपलकोटी और रात्रि विश्राम के लिए गरुड़ गंगा पहुंची। ये टीम ऋषिकेश से बदरीनाथ धाम तक के पैदल रास्तों को खोज रही है।

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एसडीआरएफ की टीम ने 20 अप्रैल को ऋषिकेश के लक्ष्मणझूला से अपनी यात्रा शुरु की। टीम अभी तक 220 किमी की दूरी तय कर चुकी है। एसडीआरएफ टीम का नेतृत्व संजय उप्रेती कर रहे हैं। उनके अलावा टीम में कांस्टेबल दीपक नेगी, राजेश कुमार, लक्ष्मण बिष्ट, महेश चंद्र, रेखा आर्य, प्रीति मल, संजय चैहान, मुकेश, अंकित पाल, नबाब अंसारी सहित कुल 11 सदस्य शामिल हैं। एसडीआरएफ की इस कोशिश से वो पौराणिक रास्ते भी फिर से सजीव हो उठेंगे, जो कि सड़क सेवा शुरू होने के बाद पूरी तरह बंद हो गए थे। प्राचीन समय में तीर्थयात्री इन्हीं रास्तों से चलते हुए बदरीनाथ पहुंचा करते थे, लेकिन जैसे ही धाम सड़क सेवा से जुड़ा, ये रास्ते भी लुप्त हो गए। अब पुराने पैदल रास्तों को खोजने के लिए टीम स्थानीय ग्रामीणों से भी जानकारी जुटा रही है, उम्मीद है जल्द ही बदरीनाथ पहुंचने वाला पौराणिक रास्ता एक बार फिर जीवंत हो उठेगा।