उत्तराखंड Phoolon ki ghati in uttarakhand

देवभूमि की वो घाटी, जहां से संजीवनी ले गए थे हनुमान...यहां मौजूद हैं जीवनरक्षक बूटियां

इस घाटी को कभी परियों का देश भी कहा जाता था। मान्यता ये भी है कि देवभूमि की इस घाटी से कभी हनुमान जी संजीवनी बूटी ले गए थे।

उत्तराखंड: Phoolon ki ghati in uttarakhand
Image: Phoolon ki ghati in uttarakhand (Source: Social Media)

: हर साल लाखों पर्यटक उत्तराखंड की फूलों की घाटी को निहारने आते हैं। कहा जाता है कि यहां आने वाले लोग लाखों फूलों की सुगंध से होश खो बैठते थे। यहां आज भी वो जड़ी और बूटियां मौजूद हैं, जो अपके शरीर में मौजूद कई बामारियों को चुटकी में खत्म कर सकती हैं...बस आपको उन जड़ियों की पहचान होनी चाहिए। महाभारत और रामायण में भी फूलों की घाटी का जिक्र मिलता है। कहा जाता है कि राम जी के छोटे भाई लक्ष्मण के मूर्छित होने पर हनुमान जी यहीं से संजीवनी बूटी लेकर गए थे। यहां उगने वाले फूलों से कई तरह के तेल और दवाइयां बनाई जाती हैं। बागवानी विशेषज्ञ औऱ फूलप्रेमियों को इस जगह से बेहद लगाव है। हिमालय की गोद में बसी फूलों की घाटी उत्तराखंड की विशेष पहचान है। हर साल लाखों पर्यटक फूलों की घाटी को निहारने के लिए उत्तराखंड पहुंचते हैं। ये घाटी चमोली जिले में है, जिसे उसकी सुंदरता के लिए विश्व धरोहर घोषित किया गया है।

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फूलों की घाटी राष्ट्रीय उद्यान के रूप में पहचान बना चुकी है। इसे यूनेस्को ने साल 1982 में राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया था। फूलों की घाटी को लेकर कई तरह की कहानियां प्रसिद्ध हैं, लंबे वक्त तक घाटी के आस-पास रहने वाले लोग इसे परियों के रहने की जगह मानते रहे। यही वजह है कि लोग यहां आने से डरते थे, इस तरह ये घाटी बाहरी प्रभावों से बची रही। कहा जाता था कि यहां जो भी आता था, वो फूलों की सुगंध से बेहोश हो जाता था। फूलों की घाटी 87.50 किमी वर्ग क्षेत्र में फैली है। फूलों की घाटी के चारों तरफ बर्फ से ढंकी पहाड़ियां हैं। साल 1931 में फूलों की घाटी की खोज फ्रैंक स्मिथ ने की थी, वो ब्रिटिश पर्वतारोही थे। फ्रेंक और उनके साथी होल्डसवर्थ ने इस घाटी को खोजा, जिसके बाद यहां प्रकृतिप्रेमियों का आना-जाना शुरू हो गया। इस घाटी को लेकर स्मिथ ने “वैली ऑफ फ्लॉवर्स” किताब भी लिखी है।