उत्तराखंड उत्तरकाशीstoy of amra devi and martyer sunder singh

उत्तराखंड का सपूत..जिसकी पत्नी ने 47 साल बाद देखी अपने शहीद पति की तस्वीर

क्या कहेंगे आप? अगर आपके पास ज़रा सा वक्त है तो शहीद गार्ड्समैन सुंदर सिंह की कहान जरूर पढ़िए। अच्छी लगे तो शेयर जरूर करें।

उत्तराखंड: stoy of amra devi and martyer sunder singh
Image: stoy of amra devi and martyer sunder singh (Source: Social Media)

उत्तरकाशी: उत्तराखंड का वो वीर सपूत 1971 में शहीद हो गया था। एक नहीं 12 दुश्मनों को मारकर वो वीरगति को प्राप्त हुआ था। 1971 में ही उसकी शादी हुई थी और शादी के दो दिन बाद वो ड्यूटी पर बॉर्डर चला गया। फिर वापस नहीं लौटा...बस एक कंबल, एक मच्छरदानी और कुछ अस्थियां वापस आई। घर में कोई तस्वीर नहीं थी...तो पत्नी अब तक अपने शहीद पति की तस्वीर नहीं देख पाई थी। यूं समझ लीजिए कि शादी के दो दिन तक ही उसने अपने पति को देखा...1971 के बाद अब जाकर उसने अपने पति की तस्वीर देखी है। ये कहानी है शहीद गाड्र्समैन सुंदर सिंह और उनकी पत्नी अमरा देवी की। सैनिक कल्याण बोर्ड उत्तरकाशी और जिलाधिकारी डॉ. आशीष चौहान ने कोशिश की तो अमरा देवी को उनके शहीद पति की तस्वीर मिल सकी। अब जानिए शहीद गार्ड्समैन सुंदर सिंह की कहानी।

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उत्तरकाशी के डुंडा ब्लॉक के पटारा गांव के रहने वाले थे शहीद सुंदर सिंह भी थे। 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध हुआ था। उसी दौरान सुंदर सिंह की शादी अमरा देवी से हुई। शादी के दो दिन बाद ही उन्हें सेना से बुलावा आया और वो चल पड़े। बॉर्डर पर भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध छिड़ा था। इस युद्ध में सुंदर सिंह ने गजब की वीरता का परिचय दिया था। 12 दुश्मनों को मारकर वो खुद शहीद हो गए। सुंदर सिंह की शहादत के चार महीने बाद उनकी अस्थियां, कंबल और स्लीपिंग बैग उनके गांव पहुंचा था। शादी के दो दिन ही बीते थे और तब से लेकर अब तक अमरा देवी अपने पति की तस्वीर नहीं देख पाई थी। 70 साल की अमरा देवी ने शहीद सुंदर सिंह को वीर चक्र से सम्मानित करने की मांग की है।

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सुंदर सिंह 21 साल की उम्र में देश की रक्षा करते करते शहीद हो गए थे। वहीं अमरा देवी ने भी त्याग और बलिदान की एक अमर कहान लिखी है। 21 साल की उम्र में अमरा देव विधवा हो गई थीं। अगर उस वक्त अमरा देवी चाहती तो शादी कर सकती थीं और नया संसार बसा सकती थीं। लेकिन उन्होंने अपना परिवार नहीं छोड़ा। पति की शहादत को 47 साल बीते और वो बस उनकी यादों के सहारे जिंदा थी। शादी के बाद सिर्फ 47 घंटे के बिताए हुए पल 47 साल तक अमरा देवी को याद रहे। वो उन्ही के सहारे जीती रहीं। अब अमरा देवी ने मांग है कि गांव के सरकारी स्कूल का नाम उनके पति के नाम पर रखा जाए। आने वाली पीढ़ियां उस शहीद के बलिदान को याद रख सकें।