उत्तराखंड vijay diwas india pakistan war memory

जय हिंद: आज उत्तराखंड के वीरों ने पाकिस्तान को पस्त किया था, शहीद हुए थे 255 जवान

पाकिस्तान के सीने पर ये दिन ऐसे ज़ख्म की तरह है, जो शायद कभी भर नहीं पाएगा। उत्तराखंड के 255 वीर इस युद्ध में शहीद हुए थे।

उत्तराखंड: vijay diwas india pakistan war memory
Image: vijay diwas india pakistan war memory (Source: Social Media)

: उत्तराखंड को वीरों की धरती यूं ही नहीं कहा जाता। प्रथम विश्व युद्ध से लेकर द्वितीय विश्व युद्ध, नेव चापेल युद्ध, भारत-पाकिस्तान युद्ध, भारत-चीन युद्ध, करगिल युद्ध और ना जाने कितने ऐसे युद्ध हैं, जहां पहाड़ के सपूतों ने दुश्मन के रौंगटे खड़े कर दिए। आज एक बार फिर से उन वीरों की वीरता को याद करने का दिन है। आज फिर से उन 255 शहीदों को याद करने का दिन है, जिनके आगे पाकिस्तान ने घुटने टेक दिए थे।
1971 में आज ही के दिन पाकिस्तान ने भारत के आगे घुटने टेके थे। इस युद्ध में उत्तराखंड के वीर सपूतों के अदम्य साहस को कोई भुला नहीं सकता। उत्तराखंड के 255 वीर इस युद्ध में शहीद हुए थे। 74 जांबाजों को वीरता पदकों से सम्मानित किया गया था। 255 शहीदों के अलावा उत्तराखंड के 78 सैनिक इस युद्ध में घायल हुए थे।

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आज भी भारतीय सेना के हर जवान को ये कहानी सुनाई जाती है। उस वक्त सेनाध्यक्ष सैम मानेकशॉ थे, जो कि बाद में फील्ड मार्शल बने। इसके अलावा बांग्लादेश में पूर्वी कमान का नेतृत्व करने वाले लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा ने भी उत्तराखंड के वीर जवानों के शौर्य और साहस को सलाम किया था। ये वो पल था जब पाकिस्तान के लेफ्टिनेंट जनरल एके नियाजी ने अपने 90 हजार सैनिकों के साथ भारत के सामने आत्मसमर्पण कर हथियार डाल दिए थे। इस आत्मसमर्पण के साथ ही ये युद्ध भी समाप्त हो गया था। उस दौरान जनरल नियाजी ने अपनी पिस्तौल जनरल अरोड़ॉा को सौंप दी थी। आज भी ये पिस्तौल इंडियन मिलिट्री एकेडमी की शान बढ़ाती है और अफसरों में जोश भरने का काम करती है।

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सिर्फ 1971 ही नहीं बल्कि 1965 के युद्ध में भी उत्तराखंड के वीर सपूत पाकिस्तान के लिए सबसे बड़ी परेशानी बन चुके हैं। 1965 में हुए इस युद्ध के दौरान पाकिस्तानी सेना भारत की सरजमीं पर घुसपैठ कर रही थी। एक तरफ भारतीय फौज की कई टुकड़ियों दुश्मनों पर दनादन गोलियां बरसा रही थी, तो दूसरी तरफ गढ़वाल राइफल की एक टुकड़ी ने पाकिस्तान को उसी के तरीके से जवाब देने की ठान ली। गढ़वाल राइफल के मतवाले इस युद्ध में भारतीय सेना की अगुवाई कर रहे थे।युद्ध के दौरान एक मौका ऐसा आया जब आठवीं गढ़वाल राइफल के जवान पाकिस्तान की सीमा में घुस गए। पाकिस्तानी घुसपैठियों को जवाब देने का इससे बेहतर तरीका क्या हो सकता था ? वीरता का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि आठवीं गढ़वाल राइफल के जवानों ने पाकिस्तान में मौजूद बुटुर डोंगराडी नाम की जगह पर तिरंगा लहरा दिया था।