: कोंणी...नाम तो याद होगा आपको? ऐसा हम इसलिए पूछ रहे हैं क्योंकि वक्त के साथ साथ हर कोई इस जबरदस्त पौष्टिक आहार को भूल चुका है। पहाड़ में पहले के लोग और अब के लोगों के डील-डौल में काफी अंतर है। कहा जाता है कि हमारे पूर्वज बड़े ही बलिष्ठ शरीर और प्रतिरोधक क्षमता के मालिक होते थे। इसकी सबसे बड़ी वजह थी स्थानीय उत्पाद यानी झंगोरा, कोदा, कोंणी। इनमें से कोंणी का एक अलग ही महत्व होता था। चावल की जगह पर कोंणी का इस्तेमाल होता था। ज्यादा पुराना वक्त नहीं बल्कि 50-60 साल पहले ये ही कोंणी , मडुवा, झंगोरा, गहत, भट्ट जैसे पौष्टिक अनाज पर्वतीय क्षेत्रों के मुख्य खाद्यान्न थे। कोंणी ना केवल एक पौष्टिक खाद्यान्न था बल्कि इस इसका भात खाने के बाद घंटों भूख नहीं लगती थी। डायबिटीज के मरीजों के लिए और दादरा नामक बीमारी में कोंणी से बढ़कर कोई दवा नहीं है।
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दरअसल कोंणी में मौजूद ओमेगा-3 फैटी एसिड शरीर के हार्मोन्स में बदलाव करता है और जल्दी भूख लगने नहीं देता। इसके सेवन से हार्ट अटैक का जोखिम भी कम होता है। इसके सेवन से धमनियों को फैलने में मदद मिलती है। रक्त का प्रवाह ठीक ढंग से हो पाता है और एन्जाइम्स फैट को आसानी से शरीर में घुलने में सहायता करते हैं। कोंणी के इस्तेमाल से शरीर का मेटाबॉलिज्म बेहतर होता है। इससे जरूरत से अधिक चर्बी शरीर में जमा नहीं हो पाती।

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इतना समझ लीजिए कि शाकाहारी लोगों के लिए अलसी ओमेगा-3 एसिड का सबसे अच्छा स्रोत कोंणी है। ये ही नहीं इसे खाने से हृदय संबंधी रोग, एलर्जी और अवसाद जैसी समस्याओं से आप खुद को बचा सकते हैं। सबसे बड़ी बात ये है कि ये शरीर में प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाता है। यानी आपके बीमार होने के चांस बेहद कम हैं। छांछ के साथ मिलाकर पकाने के बाद कोंणी का झोल उत्तराखंड के लोगो द्वारा खूूब खाया था। ये खाना निरोगी बनाने के साथ-साथ पर्याप्त पोषण भी देता था, जिससे बीमारियां नहीं होती थी। दरअसल कोंणी पर रिसर्च की बहुत ज्यादा जरूरत है। जरा सोचिए हमारे पू्र्वजों ने पहले ही सारी बीमारियों के इलाज के लिए हर दवा ढूंढी हुई थी और इनका भरपूर इस्तेमाल होता था। आज ऐसे उत्पादों के संरंक्षण की बेहद जरूरत है।