देहरादून: मंगलवार को हिंदुकुश रीजन में आए 6.6 तीव्रता के भूकंप ने संपूर्ण हिमालयी क्षेत्र को कंपा दिया। पूरे हिमालयी क्षेत्र में यह साल का दूसरा सबसे बड़ा भूकंप था।
Danger of big earthquake in Uttarakhand
इससे पहले तजाकिस्तान में इसी साल 23 फरवरी को 6.7 मैग्नीट्यूड का भूकंप आया था। वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर मध्य हिमालयी क्षेत्र की बजाय हिमालय के दूसरे हिस्से में 6.6 तीव्रता वाले भूकंप का केंद्र रहता तो भारी नुकसान हो सकता था। अगर ऐसा भूकंप दोबारा आया तो उत्तराखंड में भारी नुकसान होगा। इसकी वजह भी बताते हैं। दरअसल हिंदुकुश रीजन में अक्सर भूकंप की गहराई अधिक रहती है, इससे नुकसान कम होता है। बाकी मध्य एवं पूर्वी हिमालयी क्षेत्र में भूकंप की गहराई कम रहने से नुकसान कहीं ज्यादा हो जाता है। आगे पढ़िए
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देहरादून के वाडिया हिमालयन भू-विज्ञान संस्थान के वैज्ञानिकों के आकलन के मुताबिक हिंदुकुश रीजन में भूकंप की गहराई औसतन 150 से 180 किलोमीटर रहती है, बाकी हिमालयन रीजन में गहराई 10 से 50 किलोमीटर तक ही रहती है। वैज्ञानिक डॉ. नरेश कुमार के मुताबिक से जम्मू-कश्मीर से लेकर अरुणाचल प्रदेश, उत्तराखंड और नेपाल तक ऐसा भूकंप आया होता तो यहां भीषण आपदा का सामना करना पड़ता। यहां के भूकंप में भूगर्भीय वजहों से अधिक गहराई नहीं होती है। उत्तराखंड के चमोली में 1999 में 6.5, उत्तरकाशी में 1991 में 6.4 तीव्रता के भूकंप भारी नुकसान पहुंचा चुके हैं। वहीं सिक्किम में साल 2011 में 6.9 तीव्रता का भूकंप आया था, इसकी गहराई सिर्फ 40 किलोमीटर थी। बता दें कि हिंदुकुश हिमालय की ही एक शाखा है, जो उत्तरी पाकिस्तान के मध्य अफगानिस्तान तक फैली है, लेकिन इसकी भूगर्भीय संरचना हिमालयन रीजन से अलग है। यही वजह है कि यहां अधिक गहराई पर भूकंप आ रहे हैं।