उत्तराखंड देहरादूनDehradun Princy Verma Sanitary Napkin Unit Business

देहरादून: 12वीं की छात्रा ने घर में शुरू की नैपकिन यूनिट, हर महीने हो रहा है 1 लाख का बिजनेस

12वीं में पढ़ने वाली प्रिंसी अपना कारोबार शुरू करना चाहती थी, लेकिन ये इतना आसान नहीं था। आगे जानिए प्रिंसी की सफलता की कहानी

Dehradun Princy Verma Sanitary Napkin Busines: Dehradun Princy Verma Sanitary Napkin Unit Business
Image: Dehradun Princy Verma Sanitary Napkin Unit Business (Source: Social Media)

देहरादून: पीरियड या मासिक धर्म...ऐसा विषय जिसे लेकर महिलाएं आज भी शर्म महसूस करती हैं। सैनेटरी पैड लेते समय जब काली पॉलीथिन में लिपटे पैकेट हाथ में थमाए जाते हैं तो कई बार दुकान वाले से नजरें मिलाने तक की हिम्मत नहीं होती।

Dehradun Princy Verma Sanitary Napkin Unit Business

ग्रामीण क्षेत्रों में माहवारी के दौरान महिलाओं को भेदभाव का सामना करना पड़ता है, लेकिन देहरादून के सटे गांव में रहने वाली एक बच्ची ऐसी भी है, जो महज 20 साल की उम्र में महिलाओं की मासिक धर्म से जुड़ी समस्याओं को दूर करने का काम कर रही है। कक्षा 12 में पढ़ने वाली इस बच्ची का नाम प्रिंसी वर्मा है, जो सैनेटरी पैड का कारोबार कर रही हैं। हरबर्टपुर के इंटर कॉलेज में पढ़ने वाली प्रिंसी वर्मा आम लड़कियों की तरह प्रधानमंत्री कौशल विकास केंद्र पर ब्यूटीशियन का कोर्स करने के लिए गई थी, लेकिन वहां से वो एक आइडिया लेकर लौटी। प्रिंसी अपना कारोबार शुरू करना चाहती थी, लेकिन ये इतना आसान नहीं था। खैर किसी तरह जानकारी जुटाकर प्रिंसी ने खादी ग्रामोद्योग से सैनेटरी नैपकिन यूनिट का प्रोजेक्ट पास करा लिया।

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इसके बाद वो लोन के लिए बैंक के चक्कर काटने लगीं। पहले निराशा मिली, लेकिन बाद में 10 लाख का लोन स्वीकृत हो गया, जिसके बाद छात्रा ने सैनेटरी नैपकिन बनाने की यूनिट खड़ी कर दी। तीन महीने की मेहनत के बाद यह छात्रा एक लाख रुपये का कारोबार कर रही है। नैपकिन बनाने, पैकिंग व मार्केटिंग में 11 लोगों को रोजगार भी उपलब्ध करा रही है। प्रिंसी के पिता राजेश वर्मा और मां संगीता वर्मा सेलाकुई की फैक्ट्रियों में काम करते हैं। बेटी की कोशिश से उन्हें भी राहत मिली है। प्रिंसी की सफलता में प्रधानमंत्री कौशल विकास केंद्र का विशेष योगदान है। केंद्र के संचालक विपिन नौटियाल कहते हैं कि प्रिंसी कुछ अलग करना चाहती थीं, इसके लिए सेंटर की ओर से उन्हें सहायता दी गई। आज वो न सिर्फ खुद स्वावलंबी बनी हैं, बल्कि दूसरे लोगों को भी रोजगार की राह दिखा रही हैं