रुद्रप्रयाग: उत्तराखंड की संस्कृति और वहां की परंपराओं को फिर से जीवित करने की जिम्मेदारी लेते हुए उत्तराखंड के युवा लगातार आगे बढ़ रहे हैं और बड़े-बड़े मुकाम हासिल कर रहे हैं। बात की जाए शॉर्ट फिल्म्स की तो शॉर्ट फिल्म्स में भी उत्तराखंड के युवा शानदार काम कर अपनी प्रतिभा का जीता जागता उदाहरण दे रहे हैं। आज हम आपके लिए एक ऐसी खबर लेकर आए हैं जिसको सुनकर आपके मन में भी ऐसे युवाओं के प्रति सम्मान जाग उठेगा जो कि दिन रात मेहनत कर मुश्किल परिस्थितियों में भी शूटिंग करके उत्तराखंड के कल्चर को, वहां की परंपराओं को और वहां पर रहने वाले लोगों के जीवन को हूबहू एक दर्पण की तरह आप तक लाते हैं। बल्कि वे पूरी दुनिया के सामने अपने कैमरे के जरिए पहाड़ों की चुनौतियों को ला रहे हैं।
Paatal Tee Movie Busan Film Festival
जी हां, अप्रैल आखिर में दक्षिण कोरिया के बुसान शहर में आयोजित होने वाले 39वें इंटरनेशनल शॉर्ट फिल्म फेस्टिवल में उत्तराखंड की भोटिया जनजाति पर केंद्रित फिल्म पताल ती प्रदर्शित होगी। आपने बिल्कुल सही सुना, फेस्टिवल में प्रदर्शित होने वाली भारत की यह एकमात्र फ़िल्म है और तमाम शॉर्ट फिल्म्स के बीच में उत्तराखंड की अनोखी और रचनात्मक फिल्म को इंटरनेशनल प्लेटफार्म में जगह मिली है जो कि पूरे राज्य के लिए गर्व की बात है। आगे पढ़िए
ये भी पढ़ें:
जी हां, फेस्टिवल में प्रदर्शित होने वाली भारत की इस एकमात्र फिल्म के निर्माता और निर्देशक रुद्रप्रयाग जिले के संतोष रावत हैं और वे कई दक्षिण भारतीय फिल्मों में सह निर्देशक के रूप में भी काम कर चुके हैं। बता दें कि उनकी यह शॉर्ट फ़िल्म 26 मिनट की है जो कि पहाड़ में प्रकृति एवं मानव के बीच के संघर्ष को सामने लाती है बता दें कि फेस्टिवल के लिए 111 देशों से 2,548 लघु फिल्मों का नामांकन हुआ है। इनमें से 12 सदस्य जूरी ने जिन 40 फिल्मों का चयन किया है उनमें पहाड़ी संस्कृति पर केंद्रित फिल्म पताल ती भी शामिल है। बता दें कि इस फिल्म को फेस्टिवल में 14 वां स्थान मिला है और यह कोरिया इंटरनेशनल शॉर्ट फिल्म फेस्टिवल में दिखाई जाएगी। इसके बाद प्रदर्शित 4 सर्वश्रेष्ठ फिल्मों को ऑस्कर समेत विभिन्न विश्व स्तरीय पुरस्कारों के लिए भेजा जाएगा।
Rudraprayag Santosh Rawat film Paatal Tee
निर्माता और निर्देशक रुद्रप्रयाग जिले के संतोष रावत ने बताया कि उनकी यह फिल्म उच्च हिमालय क्षेत्र में रहने वाली भोटिया जनजाति पर केंद्रित है और यह एक ऐसे किशोर की कहानी है जो कि अपने माता-पिता को खो चुका है और अपने दादा-दादी के साथ में रहता है। आगे पढ़िए
ये भी पढ़ें:
इस फिल्म में पोते का दादा की आखिरी उम्मीद पूरी करने के लिए कोशिश करना और प्रकृति के साथ संघर्ष इस फ़िल्म को संवेदनशील बनाता है और उत्तराखंड के उच्च पर्वतीय क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की सच्चाई और उनके सामने आने वाली मुसीबतों को भी बहुत ही बारीकी से दिखाया गया है। फ़िल्म की शूटिंग नीति घाटी के अलावा रुद्रनाथ एवं गमशाली में भी हुई है। संतोष रावत का कहना है कि फेस्टिवल के लिए उनका चयन होने से पहाड़ की संस्कृति को विश्व स्तर पर एक अलग पहचान मिलेगी। बता दें कि फिल्म में रुद्रप्रयाग जिले से 4 युवाओं ने एक अहम भूमिका निभाई है। निर्माता निर्देशक संतोष रावत के अलावा चोपता के सिनेमैटोग्राफर बिट्टू रावत और, एग्जीक्यूटिव प्रोड्यूसर गजेंद्र रौतेला एवं उनके पुत्र कैमरामैन दिव्यांशु रौतेला शामिल हैं। बता दें कि बुसान इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल को ऑस्कर के लिए गेटवे माना जाता है और यहीं से बेस्ट फिल्में सेलेक्ट होकर ऑस्कर के लिए नॉमिनेट की जाती हैं। फ़िल्म की सिनेमैटोग्राफी के साथ ही प्राकृतिक रोशनी और लैंडस्केप के साथ ही पूरी कहानी दर्शकों को अंत तक बांध के रखती है और इस फिल्म को बेहतरीन बनाती है।