उत्तराखंड पिथौरागढ़Apple orchards at Munsiyari Pithoragarh

पिथौरागढ़ में तैयार हैं सेब के बागान, ITBP के जवानों की मेहनत रंग लाई

मुनस्यारी और धारचूला में फिर से सेब की खेती ने पकड़ी रफ्तार, जागी उम्मीद, आईटीबीपी के जवानों ने भी तैयार किया बागान

Pithoragarh Apple Orchards: Apple orchards at Munsiyari Pithoragarh
Image: Apple orchards at Munsiyari Pithoragarh (Source: Social Media)

पिथौरागढ़: सीमांत जिले पिथौरागढ़ में किसी समय में सबसे स्वादिष्ट और बड़े आकार वाले सेबों की खेती होती थी जिसकी मार्केट में जबरदस्त डिमांड थी। मगर समय के साथ सेब की खेती में निरंतर गिरावट देखी गई और एक समय तो ऐसा आया कि सेब की खेती तकरीबन खत्म ही हो गई। मगर उम्मीद पर दुनिया कायम है। दुनिया मे संभावनाओं की कमी नहीं है। उम्मीद की किरण एक बार फिर से नजर आ रही है और सेब की खेती को मुनस्यारी और धारचूला में नया जीवन मिल रहा है। जी हां, मुनस्यारी और धारचूला में एक बार फिर से सेब की खेती शुरू हो रही है। सेब उत्पादक क्षेत्रों में एक बार फिर से सेब उत्पादन के कीर्तिमान बन रहे हैं और एक बार फिर से धारचूला और मुनस्यारी के सेब उत्पादक क्षेत्र में अपना वर्चस्व स्थापित कर रहे हैं। बता दें कि गूंजी में आईटीबीपी के जवानों ने भी सेब का बागान तैयार किया है। व्यास घाटी में भी ग्रामीणों ने सेब की खेती दोबारा से शुरू होती है। चलिए आपको बताते हैं कि आखिर यहां पर सबसे अधिक डिमांड पर रहने वाले सेबों के उत्पादन में कमी क्यों आई और कैसे दोबारा से यहां के सेब मार्केट में वर्चस्व स्थापित कर रहे हैं.

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चार दशक पूर्व तक मुनस्यारी और धारचूला में सेबों का व्यापक उत्पादन होता था। मगर तब उत्पादन क्षेत्रों तक सड़क की कोई व्यवस्था नहीं थी जिस कारण सेब गांव में ही सड़ जाते थे और ग्रामीणों को भारी नुकसान उठाना पड़ता था जिसके बाद ग्रामीणों ने सेब उत्पादन बंद कर दिया। मगर एक बार फिर से उम्मीद की किरण नजर आई जब बीते दशकों में एक बार फिर से प्रोत्साहन पाकर युवाओं ने सेब की खेती को रोजगार का जरिया बनाने की ठानी और उसके उत्पादन के लिए आगे आए। उच्च हिमालई क्षेत्रों से लेकर उच्च मध्यम तक सेब के पौध लगाए गए और अब धारचूला के उच्च हिमालयी व्यास घाटी में सेब का अच्छा खासा उत्पादन हो रहा है। यहां पर ग्यारह हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित गूंजी में आईटीबीपी ने भी सेब का बागान बना दिया है और व्यास घाटी के ग्रामीण भी सेब का उत्पादन कर रहे हैं। सेब उत्पादन के लिए मौसम भी सहायक बनता जा रहा है। इस बार अच्छी बर्फबारी के कारण इसका असर पैदावार पर भी साफ देखने को मिलेगा। सेब उत्पादन के लिए 1800 घंटे चिलिंग पॉइंट की आवश्यकता होती है। यह मानक बर्फबारी से ही पूरे होते हैं। मुनस्यारी के बौना, गोल्फा, तौमिक, सहित कई गांवों में सेब उत्पादन हो रहा है। इन क्षेत्रों में सेब के लिए भरपूर चिलिंग पॉइंट मिल रहा है जिससे सेब की पैदावार अच्छी होगी।