रुद्रप्रयाग: साल 2019। पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने श्राइन बोर्ड की तर्ज पर चारधाम देवस्थानम बोर्ड बनाने का फैसला लिया। तीर्थ पुरोहित इसका विरोध कर रहे थे, इसके बावजूद अधिनियम बनाया गया। चारधाम देवस्थानम बोर्ड के विरोध में चारों धामों के तीर्थ पुरोहित 734 दिन तक आंदोलन पर रहे। सरकार तक अपनी बात पहुंचाने का हर तरीका अपनाया। हक-हकूकधारियों के दबाव के आगे सरकार को झुकना पड़ा। चुनावी साल में राज्य की बीजेपी सरकार ने चारधाम देवस्थानम बोर्ड एक्ट को रद्द कर दिया। जिसके बाद बदरी-केदारनाथ धाम की आठ दशक पुरानी व्यवस्था फिर वजूद में आ गई है। साथ ही गंगोत्री और यमुनोत्री की व्यवस्था भी अब स्थानीय मंदिर समितियां देखेंगी। उत्तराखंड के चारधाम देवस्थानम बोर्ड को रद्द करने का विधेयक पारित होने के बाद चारधाम और उससे जुड़े 51 मन्दिरों के तीर्थपुरोहित और हक-हकूकधारियों ने राहत की सांस ली है। देवस्थानम बोर्ड के गठन से पहले बदरीनाथ और केदारनाथ के लिए अंग्रेजों की ओर से बनाए गए श्री बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति एक्ट लागू था, जबकि गंगोत्री और यमुनोत्री के लिए स्थानीय तीर्थ पुरोहितों और हक-हकूकधारियों की कमेटी के जरिये व्यवस्था की जाती थी।
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चारधाम देवस्थानम बोर्ड के विधिवत खत्म होने के अधिनियम के पारित होने के बाद अब फिर से पुरानी व्यवस्था लागू हो गई है। बता दें कि ढाई साल पहले त्रिवेंद्र सरकार ने बदरीनाथ-केदारनाथ और गंगोत्री-यमुनोत्री समेत 51 मन्दिरों की व्यवस्था के लिए विधानसभा से देवस्थानम बोर्ड अधिनियम पारित किया था। इसके साथ पूर्व की सभी व्यवस्थाओं को इस बोर्ड के तहत रद्द कर दिया गया था, जिससे पूर्ववर्ती व्यवस्था से जुड़े पंडे-पुरोहित और तीर्थ पुरोहित नाराज थे। यमुनोत्री से लेकर केदारनाथ और गंगोत्री से लेकर बदरीनाथ तक सरकार के इस निर्णय का जबरदस्त विरोध हुआ। न्यायालयों में बोर्ड के गठन के निर्णय के खिलाफ याचिका दाखिल की गई थी। सूत्रों के मुताबिक, हिंदुत्व की राजनीति करने वाली बीजेपी के लिए चुनाव से ठीक पहले पंडा, पुरोहित और साधु-संत समाज की नाराजगी चिंता की वजह बन रही थी। यही वजह रही कि पुष्कर सिंह धामी सरकार को चारधाम देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड को भंग करने का फैसला लेना पड़ा।