देहरादून: एक वक्त था जब उत्तराखंड (Uttarakhand Koda Jhangora Buransh Malta GI Tag) के कई इलाकों की पहचान इनके चाय बागानों से हुआ करती थी। अंग्रेजों के जमाने में देहरादून जैसे शहर से बड़े पैमाने पर चाय का उत्पादन किया जाता था। जिससे हजारों लोगों का रोजगार जुड़ा था, लेकिन वक्त के साथ सब खत्म होता चला गया। उत्तराखंड के कई उत्पादों को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाने की जरूरत है और सरकार इस दिशा में काम भी कर रही है। उत्तराखंड के बुरांश के शरबत, बेरीनाग की चाय और लाल चावल को जल्द ही भौगोलिक संकेतांक यानि जीआई टैग मिल सकता है। सरकार इनके साथ ही नौ और उत्पादों को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाने के लिए जीआई टैग दिलाने की तैयारी कर रही है। कृषि एवं कृषक कल्याण मंत्री सुबोध उनियाल के अनुसार राज्य के उत्पादों को जीआई टैग मिलने से उन्हें उत्तराखंड की विशिष्ट पहचान के साथ जाना जाएगा। इससे उत्तराखंड के इन उत्पादों को ब्रांड उत्तराखंड के रूप में स्थापित करने में सहायता मिलेगी। यहां आपको जीआई टैग यानी भौगोलिक संकेतांक के बारे में भी जानना चाहिए। यह एक विशिष्ट प्रकार का संकेतांक है। इसका प्रयोग किसी विशिष्ट क्षेत्र में पैदा होने वाले या बनाए जाने वाले उत्पाद को पहचान देने में किया जाता है।
ये भी पढ़ें:
यह भी पढ़ें - पहाड़ का पौष्टिक आहार: प्रोटीन का जबरदस्त सोर्स है भट्ट, कई बीमारियों का जड़ से मिटा दे
इस टैग के मिलने से संबंधित वस्तु अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक विशिष्ट पहचान के साथ स्थापित हो जाती है। अब तक राज्य के आठ उत्पादों को जीआई टैग हासिल हो चुका है। उत्तराखंड में सबसे पहले तेजपत्ता को जीआई टैग मिला था। साथ ही कुमांऊ के च्यूरा ऑयल, मुनस्यारी की राजमा, उत्तराखंड के भोट क्षेत्र का दन, उत्तराखंड के ऐपण, रिंगाल क्राफ्ट, ताम्र उत्पाद एवं थुलमा को भी जीआई टैग मिल चुका है। इनके बाद राज्य की विशिष्ट पहचान रखने वाली 11 और वस्तुओं को भी सरकार जीआई टैग में शामिल कराना चाहती है। इनमें पहाड़ में मिलने वाला लाल चावल, बेरीनाग की चाय, गहत, मंडुआ, झंगोरा, बुरांस का शरबत, काला भट, चौलाई/ रामदाना, अल्मोड़ा की लाखोरी मिर्च, पहाड़ी तोर दाल और माल्टा शामिल है। इन उत्पादों को जीआई टैग (Uttarakhand Koda Jhangora Buransh Malta GI Tag) दिलाने के लिए आवेदन की प्रक्रिया शुरू की जा चुकी है।