देहरादून: उत्तराखंड में सैकड़ों साल पुराने देव वनों और देव वृक्षों को विरासत के रूप में संरक्षित किया जाएगा। उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र यूसैक देव वनों के संरक्षण में अहम योगदान दे रहा है। यूसैक ने उत्तराखंड के 441 देव वनों की सेटेलाइट मैपिंग शुरू की है। उत्तराखंड अपनी अनमोल वन संपदा के लिए दुनियाभर में मशहूर है। यहां आज भी करीब 441 देव वन बताए जाते हैं। जिन्हें हमारे पूर्वजों ने हमेशा सहेजकर रखा। अब इन देव वनों को अंतरराष्ट्रीय पहचान मिलेगी, इन्हें दस्तावेजों में सहेजा जा सकेगा। इसके लिए यूसैक ने सेटेलाइट मैपिंग शुरू कर दी है। यूसैक निदेशक डॉ. एमपीएस बिष्ट के निर्देशन में यह कार्य डॉ. गजेंद्र रावत कर रहे हैं। यहां आपको उत्तराखंड के कुछ प्रमुख देव वन और देव वृक्षों के बारे में भी बताते हैं। पौड़ी के ताड़केश्वर महादेव मंदिर में देवदार के हरे-भरे वन हैं। इसी तरह पिथौरागढ़ के कालिका मंदिर क्षेत्र में भी देवदार के वृक्ष बड़ी तादाद में मिलते हैं। यह भी पढ़ें - गढ़वाल में ऐसी ग्राम प्रधान भी हैं, रोशनी देवी नेगी ने बदल डाली गांव की तस्वीर
नैनी डांडा के वनों की भी धार्मिक महत्ता है। यहां बांज का एक प्राचीन पेड़ है। इसी तरह दीवा डांडा के वन क्षेत्र में बांज के पेड़ों को बचाने के लिए इसे पौराणिक मान्यता से जोड़ा गया है। जोशीमठ में 500 साल पुराना शहतूत का वृक्ष है, कहते हैं इसके नीचे आदि गुरु शंकराचार्य ने तपस्या की थी। चमोली जिले में लाटू देवता के मंदिर में 400 साल से भी पुराना देवदार का वृक्ष है। यूसैक के निदेशक डॉ. एमपीएस बिष्ट कहते हैं कि ऐसे विशेष वृक्षों का भी सर्वे किया जा रहा है, जिनकी उम्र 400 से 500 सौ साल या इससे अधिक है। जहां भी देव वनों की जानकारी मिल रही है, वहां जियो टैगिंग कराई जा रही है। अभी तक सर्वाधिक देव वन पिथौरागढ़ जिले में मिले हैं। इनका सेटेलाइट मैप भी तैयार किया जा रहा है। ताकि विश्व में कहीं से भी एक क्लिक पर देव वनों की जानकारी हासिल की जा सके।