टिहरी गढ़वाल: कुछ ओरिजिनल सुनना है, तो ये गीत जरूर सुनिएगा...वरना सोशल मीडिया पर कॉपी गीतों की कमी नहीं है। ओरिजिनिल सुनिए भई..कानों को शब्द अच्छे लगेंगे, मन को संगीत अच्छा लगेगा और दिल को तसल्ली होगी कि चलो उत्तराखंड में कुछ युवा तो हैं, जो ओरिजिनल पर फोकस कर रहे हैं। जंदेरू, उरख्यली, गंज्याली....ये पहाड़ की जिंदगी ही नहीं, पहाड़ की संस्कृति का भी अभिन्न हिस्सा हैं। यही वजह है कि उत्तराखंडी लोकगीतों में इन्हें खास जगह मिली है, और रुतबा भी। लॉकडाउन के चलते वीरान पड़े घर-गांवों में रौनक लौट आई है। तिबरी चमकने लगी हैं, खेतों मे चहल-पहल दिखने लगी है। पहाड़ की ऐसी ही रस्याण से भरा एक गढ़वाली गीत भी यूट्यूब पर खूब धूम मचा रहा है। गढ़वाली गीत का टाइटल है ‘गंज्याली’। ठेठ पहाड़ी संगीत के शौकीनों के लिए ये गीत किसी सौगात से कम नहीं। सबसे खूबसूरत हैं शब्द..शब्दों का ऐसा मायाजाल कोई ठेठ गढ़वाली बोलने वाला पारखी ही कर सकता है। तो लीजिए...प्रदीप लिंग्वाण और कैलाश डंगवाल की जोड़ी ने इस गीत को शब्दों से सजाया है। शब्दों में पहाड़ की खुश्बू है..इसे जरूर महसूस कीजिएगा। ‘आंख्योंन लांदी सुर्याली, खुट्योंन तलबली ढसाक’ जैसे खूबसूरत शब्दों से सजा ये गीत शोर और कानफोड़ू गीतों के बीच सुकून की ठंडी बयार जैसा लगता है। एमजीवी डिजिटल के बैनर तले लांच हुआ ये गीत खूब पसंद किया जा रहा है। आगे देखिए वीडियो
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गीत को स्वर और संगीत से सजाया है गुंजन डंगवाल ने। इनका काम हमेशा की तरह शानदार रहा है..संगीत को जरा हिमाचली टच देने की कोशिश की गई है। लेकिन इस गढ़वाली गीत को कर्णप्रिय बनाने का स्पेशल क्रेडिट जाता है प्रदीप लिंग्वाण और कैलाश डंगवाल को। जिन्होंने इस गढ़वाली गीत को खूबसूरती से लिखा है। रिद्म रणजीत सिंह का है। यू-ट्यूब पर लांच हुए गीत में वीडियो नहीं है, लेकिन यकीन मानिए यही इस गीत की सबसे सुंदर बात है। गीत सुनते हुए आप कहीं खो से जाते हैं। दिमाग में गंज्याली-उरख्यली से सजी पहाड़ की तस्वीरें कौंधने लगती है। आप खुद को पहाड़ के और करीब महसूस करने लगते हैं। चलिए अब आपको ये गीत दिखाते हैं...उम्मीद है आपको भी शानदार प्रस्तुति जरूर पसंद आएगी, आगे देखें वीडियो....