उत्तराखंड टिहरी गढ़वालUsha nakoti became inspiration for others

ऊषा नकोटी..पति बीमार हुए तो शुरु किया अपना काम, अब दूसरे राज्यों से भी बढ़ी डिमांड

एक वक्त था जब ऊषा बेहद मुश्किल दौर से गुजर रही थीं, पर उन्होंने मुश्किलों को खुद पर हावी नहीं होने दिया, जानिए इनके संघर्ष की कहानी...

Usha nakoti: Usha nakoti became inspiration for others
Image: Usha nakoti became inspiration for others (Source: Social Media)

टिहरी गढ़वाल: महिला सशक्तिकरण के असली मायने जानने हैं तो टिहरी चले आइए, यहां की रहने वाली ऊषा नकोटी ने स्वावलंबन के जरिए ना सिर्फ अपनी बल्कि अपने जैसी की महिलाओं की किस्मत संवारी है। टिहरी में एक जगह है चंबा, ऊषा नकोटी चंबा के कुड़ियाल गांव में रहती हैं। ऊषा लघु कुटीर उद्योग के जरिए ऊन और जूट के उत्पाद तैयार करती हैं। आज वो अपने पैरों पर खड़ी हैं, साथ ही गांव की 24 से ज्यादा महिलाओं को भी रोजगार दिया हुआ है। छोटे से पहाड़ी गांव में रहने वाली ऊषा के लिए ये सब आसान नहीं था। 45 साल की ऊषा की मुश्किलें बीस साल पहले शुरू हुईं। जब उनके पति वीरेंद्र सिंह अचानक बीमार पड़ गए। घर की जिम्मेदारी ऊषा के कंधों पर आ गई। घर संभालने के लिए ऊषा ने सबसे पहले सिलाई-बुनाई और कढ़ाई का प्रशिक्षण लिया। बाद में चंबा में लघु कुटीर उद्योग की स्थापना की। मशीनों से कुछ उत्पाद बनाए और उन्हें बेचना शुरू कर दिया। काम शुरू ही हुआ था कि तभी ऊषा के पति का निधन हो गया। ऊषा दुख और सदमे में थी, पर उन्होंने इस सदमे से उबरकर फिर से काम करना शुरू किया। आमदनी हुई तो दूसरी महिलाओं को भी काम सिखाया। ऊषा ने घर संभालने के साथ-साथ काम करना शुरू कर दिया। मेहनत रंग लाई और उनके उत्पाद बाजार में बिकने लगे। काम बढ़ा तो दूसरी महिलाओं के लिए रोजगार के मौके भी बढ़े। आज पहाड़ की ये महिला आत्मनिर्भर है, अपने बेटे को देहरादून में उच्च शिक्षा दिला रही है। ऊषा की इकाई से करीब दो दर्जन महिलाएं जुड़ी हुई हैं, जो कि हर महीने 7 से 10 हजार रुपये तक कमा लेती हैं। ऊषा की उद्योग इकाई में स्वेटर, शॉल, मफलर, पंखी, पर्स और थैले बनाए जाते हैं। जिन्हें ऊन और जूट से तैयार किया जाता है। उनके बनाए प्रोडक्ट की डिमांड देहरादून के साथ-साथ दिल्ली और चंडीगढ़ में भी है। ऊषा दो सौ से ज्यादा महिलाओं का काम सिखा चुकी हैं। अपनी मेहनत के दम पर ऊषा ने ना सिर्फ खुद को आत्मनिर्भर बनाया, बल्कि दूसरी महिलाओं को भी स्वरोजगार की राह दिखाई। ऊषा जैसी महिलाएं ही महिला सशक्तिकरण की असली मिसाल हैं।