देहरादून: पहाड़ में अवैध रूप से रह रहे लोगों के लिए खतरे की घंटी बज गई है। अपने उत्तराखंड में भी एनआरसी यानि नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन लागू होगा। ये ऐलान मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने देहरादून में किया। एक कार्यक्रम मे सीएम ने कहा कि उत्तराखंड सीमांत प्रदेश है। राज्य की सीमाएं दूसरे देशों से लगी हुई हैं। सामरिक दृष्टि से उत्तराखंड बेहद महत्वपूर्ण राज्य है। जरूरत पड़ी तो यहां भी एनआरसी लागू किया जाएगा। इस संबंध में वो मंत्रिमंडल से विचार-विमर्श करेंगे। इसके बाद ही आगे की रणनीति तय की जाएगी। एनआरसी यानि नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन क्या है और इसकी शुरुआत कब हुई, आपको ये भी जानना चाहिए। असम में एनआरसी के इस्तेमाल की शुरुआत 1951 में की गई थी। उस वक्त पंडित नेहरू की सरकार थी। बारदोलाई विभाजन के बाद बड़ी संख्या में पूर्वी पाकिस्तान से भाग कर आए बंगाली हिंदू शरणार्थी असम में बसाए जा रहे थे। जिसके खिलाफ एनआरसी का इस्तेमाल किया गया था। आगे पढ़िए
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साल 2010 में एनआरसी को अपडेट करने की शुरुआत असम के ही दो जिलों बारपेटा और कामरूप से हुई। एनआरसी का उद्देश्य देश के वास्तविक नागरिकों को रजिस्टर्ड करना और अवैध प्रवासियों की पहचान करना है। असम सरकार ने 2015 में सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में एनआरसी का काम फिर से शुरू किया है। उत्तराखंड में अगर एनआरसी की शुरुआत हुई तो ये राज्य की सुरक्षा के लिहाज से महत्वपूर्ण कदम होगा। ये तो आप जानते ही हैं कि उत्तराखंड पलायन की समस्या झेल रहा है। लोगों के चले जाने से जो घर-गांव खाली हो रहे हैं, उनमें बाहरी लोग बसने लगे हैं। इनका ना तो कोई रिकॉर्ड होता है और ना ही पुलिस वेरिफिकेशन। इन घुसपैठियों में असामाजिक तत्व भी हो सकते हैं, जो कि पहचान बदलकर उत्तराखंड में रह रहे हैं। त्रिवेंद्र सरकार ने ऐलान तो कर दिया है, पर एनआरसी पर एक्शन कब लिया जाएगा ये देखना होगा।