उत्तराखंड Shayara bano of uttarakhand who raised voice against triple talaq

उत्तराखंड की महिला को सलाम, तीन तलाक के खिलाफ भरी हुंकार, अब संसद में पास हुआ बिल

देश की संसद में जैसे ही तीन तलाक बिल पास हुआ, तो उत्तराखंड की सायरा बानो की खुशी का ठिकाना नहीं रहा।

ट्रिपल तलाक: Shayara bano of uttarakhand who raised voice against triple talaq
Image: Shayara bano of uttarakhand who raised voice against triple talaq (Source: Social Media)

: देश की न्यायपालिका में सबसे बड़े अधिकारों में से एक अधिकार है समानता का अधिकार। ये वो अधिकार है जिस पर हर किसी का हर है। लेकिन मुस्लिम महिलाओं के लिए ये हक कहीं गुम हो गया था। उत्तराखंड से एक आवाज उठी तो देशभर में बवाल मच गया। जी हां हम बात कर रहे हैं तीन तलाक की। एक ऐसी प्रथा जिससे हर मुस्लिम महिला छुटकारा पाना चाहती थी। लेकिन देश की राजनीति में इस मुद्दे को इस तरह उछाला गया था कि मुस्लिम महिलाओं का जीना दुश्वार हो गया था। साल 2017.. 22 अगस्त को देश की सबसे बड़ी अदालत यानी सुप्रीम कोर्ट ने ट्रिपल तलाक को असंवैधानिक करार दिया । अब देश की संसद में जैसे ही तीन तलाक बिल पास हुआ, तो उत्तराखंड की सायरा बानो की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। ये वो ही महिला हैं, जिन्होंने इस मुद्दे को लेकर लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी। आखिरकार इस महिला ने जीत हासिल की। शायरा बानो इस मामले में मुख्य याचिकाकर्ता हैं। शायरा बानो उत्तराखंड के काशीपुर की रहने वाली हैं। उनकी शादी 2001 में हुई थी। 10 अक्टूबर 2015 को उनके पति ने उन्हें तलाक दे दिया था। शायरा ने कोर्ट में अर्जी दी थी। इस अर्जी में शायरा ने कहा था कि संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 के तहत हर किसी को समानता का अधिकार है। लेकिन तीन तलाक मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। इसके बाद 22 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक को असंवैधानिक करार दिया था।

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अब जब इस बिल को संसद में पास कर दिया गया है तो शायरा बानो के चेहरे पर खुशी देखते ही बनती है। याचिकाकर्ता शायरा बानो के वकील ने कहा था कि अनुच्छेद 25 में धार्मिक प्रैक्टिस की बात है। उन्होंने कहा कि धार्मिक दर्शनशास्त्र में तीन तलाक को पाप कहा गया है। ऐसे में इस प्रथा को धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार के तहत संरक्षित क्यों किया जाए। उत्तराखंड के काशीपुर की शायरा ने 2016 में सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दायर की थी। उन्होंने ट्रिपल तलाक और हलाला के चलन को चुनौती दी थी। उन्होंने मुस्लिमों में बहुविवाह प्रथा को भी चुनौती दी। शायरा ने मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत महिलाओं के साथ ऐसे भेदभाव के मुद्दे पर विचार करने को कहा था। शायरा ने अर्जी में कहा था कि तीन तलाक संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 के तहत मिले मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। शायरा ने जैसे ही ये याचिका दाखिल की तो देशभर से मुस्लिम महिलाओं को उनका समर्थन मिला था। एक के बाद एक कई और याचिकाएं दायर की गईं। शायरा बानो का कहना है कि ये न सिर्फ मेरे लिए बल्कि मुस्लिम महिलाओ के लिए ऐतिहासिक दिन है। ये सुधार की दिशा में मील का पत्थर साबित होगा।