उत्तराखंड पिथौरागढ़STORY OF JANKI OF PITHORAGARH

पहाड़ की जानकी...3 गांवों की पहली इंटर पास लड़की, 14 Km पैदल चल कर जाती थी स्कूल

पहाड़ की जानकी महिला सशक्तिकरण की असली मिसाल है..पढ़ाई के लिए जानकी ने जो संघर्ष किया वो देख आपकी आंखें भर आएंगी..

उत्तराखंड न्यूज: STORY OF JANKI OF PITHORAGARH
Image: STORY OF JANKI OF PITHORAGARH (Source: Social Media)

पिथौरागढ़: कहते हैं संघर्ष जितना कठिन होगा, जीत भी उतनी ही शानदार होगा...ये लाइन डीडीहाट की पहाड़ी बिटिया जानकी पर एकदम फिट बैठती है। पढ़ाई के लिए जुनून के बारे में आपने सुना तो होगा, लेकिन जानकी इस जुनून की साक्षात मिसाल है। पिथौरागढ़ डीडीहाट की जानकी आदिम वनराजी समाज से ताल्लुक रखती हैं। कूटा चौरानी में रहने वाली जानकी ने हाल ही में 12वीं की परीक्षा पास की, जानकी की ये उपलब्धि इसलिए बड़ी है क्योंकि वो कूटा, चौरानी और मदनपुरी समेत तीन वनराजि गांवों की एकमात्र ऐसी लड़की है, जिसने इंटर पास किया है। पढ़ाई जानकी के लिए सपना नहीं उसका जुनून है। स्कूल जाने के लिए जानकी को हर दिन 14 किलोमीटर का पैदल सफर करना पड़ता था। पैरों में टूटी चप्पलें पहने ये बच्ची जंगल और नालों को पार कर किसी तरह स्कूल पहुंचा करती थी। वापस आकर घर के कामों में हाथ बंटाती थी। आज हम तमाम सुविधाएं होने पर भी अक्सर शिकायतें ही करते रहते हैं, लेकिन जानकी के संघर्ष के बारे में जानकर आपकी आंखें भर आएंगी।

ये भी पढ़ें:

यह भी पढें - उत्तराखंड: मां ने स्कूल में खाना पकाकर बेटे को पढ़ाया, बेटे ने टॉपर बनकर मां का मान बढ़ाया
दूसरी सुविधाएं तो दूर जानकी के पास स्कूल ड्रेस का दूसरा जोड़ा तक नहीं था। 11वीं और 12वीं...यानि पूरे दो साल वो एक ही स्कूल ड्रेस में स्कूल जाती रही। उसकी मेहनत का ही नतीजा है कि आज जानकी इंटर पास हो गई है। जानकी के माता-पिता बेहद गरीब हैं। वो खेती कर किसी तरह पेट भरते हैं। पर बिटिया में पढ़ने की लगन थी, तो माता-पिता ने भी उसे पढ़ने से नहीं रोका। उत्तराखंड बोर्ड की 12वीं की परीक्षा में जानकी सेकेंड आई है। बता दें कि हाईस्कूल की पढ़ाई के लिए भी जानकी को घर से 3 किलोमीटर दूर स्थित स्कूल में जाना पड़ता था। इंटर के लिए वो दूनाकोट में पढ़ने गई जो कि 14 किलोमीटर दूर है। पढ़ने के लिए जानकी ने ना तो घने जंगल की परवाह की और ना ही उफनते नालों की...वो टूटी चप्पल पहनकर घने जंगल को नापती रही और किसी तरह इंटर कर लिया। पर जानकी का संघर्ष अभी खत्म नहीं हुआ है।

ये भी पढ़ें:

यह भी पढें - उत्तराखंड: बेटी ने किसान पिता का सिर गर्व से ऊंचा किया...बोर्ड में बनी टॉपर
वो आगे पढ़ना चाहती है, लेकिन परेशानी ये है कि गांव के पास कोई कॉलेज नहीं है। वहीं परिवार के पास पेट भरने तक के पैसे नहीं हैं तो भला वो शहर में रहने का खर्चा कैसे उठाएंगे। समाज कल्याण विभाग भी इस बच्ची की सुध नहीं ले रहा। समाज कल्याण विभाग जनजाति वर्ग के बच्चों को हर साल छात्रवृत्ति देता है, लेकिन कक्षा 9 के बाद से जानकी को छात्रवृत्ति नहीं मिली। पिता हयात सिंह और माता देवकी देवी अपनी बिटिया के सपने पूरे होते देखना चाहती है, पर वो बेबस हैं, लाचार हैं...जानकी ने अपने दम पर जो किया है वही असली महिला सशक्तिकरण है, पहाड़ में जानकी जैसी सैकड़ों बच्चियां हैं जो हर दिन जंगल-गदेरे पार कर स्कूल पढ़ने जाती हैं। मुश्किलें आती हैं पर हार नहीं मानती। ऐसी बच्चियों को हमारा सलाम...समाज कल्याण विभाग को भी इस तरफ ध्यान देना चाहिए और जानकी की मदद करनी चाहिए।