: जिस बात का इंतजार था, आखिरकार वो वक्त आ गया है। चार धामों में से एक बाबा बदरीनाथ के कपाट खुलने का वक्त तय हो गया है। इस बार 10 मई को सुबह 4 बजकर 15 मिनट पर बदरीनाथ धाम के कपाट खुलेंगे। बसंत पंचमी के अवसर पर नरेंद्र नगर राजदरबार में आयोजित समारोह में कपाट खुलने की तिथि का ऐलान हुआ। इस अवसर पर सांसद माला राज्य लक्ष्मी शाह, राजकुमारी श्रृजा, श्रीबदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति अध्यक्ष मोहन प्रसाद थपलियाल, मुख्यकार्यकारी बी.डी सिंह डिमरी पंचायत अध्यक्ष राकेश डिमरी आदि मौजूद रहे। टिहरी राजा को बोलांदा बदरी कहा गया है और सदियों से वो ही बाबा बदरीनाथ के कपाट खुलने की तिथि का निर्धारण करते रहे हैं। पंचाग देखकर और गणेश पूजा के बाद ही कपाट खुलने की तिथि निर्धारित की गई है। बदरी-केदार मंदिर समिति के वेदपाठियों और पुरोहितों की उपस्थिति में पंचांग की गणना की गई। इसके बाद कपाट खुलने का पावन मुहूर्त तय किया गया।
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गाडू घड़ा (तेल कलश) यात्रा की तिथि 24 अप्रैल नियत हुई। अप्रैल को टिहरी राजदरबार में ही महारानी और सुहागिन महिलाओं के द्वारा भगवान बदरीनाथ के लिए तिल से तेल पिराया जाएगा। ये तेल भगवान बदरीनाथ के लिए चढ़ाया जाता है। इसे गाड़ू घड़ा कहते हैं। इस बार पक्की उम्मीद है कि बदरीनाथ में यात्रा का नया रिकॉर्ड बनेगा। इसके लिए तमाम तैयारियां चल रही हैं। इसके साथ ही कहा जा रहा है कि इस बार बाबा केदारनाथ धाम भी एक नए अवतार में दिखेंगे। केदारनाथ में नया रिकॉर्ड बनना तय है। इस बार नई केदारपुरी को भव्य रूप दिया गया है। मान्यताओं के मुताबिक जब गंगा नदी धरती पर अवतरित हुई, तो ये 12 धाराओं में बंट गई। बदरीनाथ के स्थान पर मौजूद धारा अलकनंदा के नाम से प्रचिलित हुई और ये जगह बदरीनाथ, भगवान विष्णु का वास बना। शंकराचार्य, ने इसका निर्माण कराया था।
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पौराणिक किताबों में भी इस बात का सबूत मिलता है। चमोली जिले में स्थित बदरीनाथ में एक मंदिर है, इस मंदिर में विष्णु की वेदी है। ऐसा माना जाता है कि ये 2,000 साल से भी ज्यादा समय से एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थान रहा है। बदरीनाथ की मूर्ति शालग्रामशिला से बनी हुई चतुर्भुज ध्यानमुद्रा में है। ऐसी मान्यता है कि ये मूर्ति देवताओं ने नारदकुण्ड से निकालकर स्थापित की थी। शंकराचार्य की प्रचार-यात्रा के समय बौद्ध अनुयायी तिब्बत जाते हुए मूर्ति को अलकनन्दा में फेंक गए थे। शंकराचार्य ने अलकनन्दा से इस मूर्ति को दोबारा बाहर निकालकर स्थापना की। उसके बाद तदनन्तर मूर्ति दोबारा स्थानान्तरित की गई, और तीसरी बार तप्तकुण्ड से निकालकर रामानुजाचार्य ने इसकी स्थापना की। शंकराचार्य ने अलकनन्दा से बदरीनाथ की मूर्ति को दोबारा स्थापना के साथ ही देवभूमि में धर्म के गौरव को दोबारा स्थापित किया। जिन देवताओं ने अपनी हमें जीने की राह दिखाई उनका वास उत्तराखंड में है।