उत्तराखंड Story of hukum singh uniyal

काश! उत्तराखंड के हर स्कूल में ऐसा शिक्षक हो...

हुकुम सिंह उनियाल कोई बड़ा नाम नहीं ,लेकिन इस शिक्षक की अदम्य उर्जा से शिक्षा विभाग को चार चांद लग गए। पढ़िए और शेयर कीजिए..इनके बेमिसाल जज्बे की कहानी।

उत्तराखंड: Story of hukum singh uniyal
Image: Story of hukum singh uniyal (Source: Social Media)

: एक पुरानी कहावत है ‘जहां चाह वहां राह’। अगर आपके दिल में कुछ कर गुजरने की चाहत है, तो कड़ी मेहनत ही सफलता तक पहुंचाएगी। ऐसी ही कहावत को सच साबित कर दिखाया है हुकुम सिंह उनियाल ने। देहरादून के राजपुर रोड स्थित राजकीय पूर्व माध्यमिक विद्यालय देहरा जाकर देखिए। कभी 5 छात्रों वाले इस स्कूल में आज करीब 500 छात्रों का भविष्य संवारा जा रहा है। सिर्फ इतना ही नहीं ये स्कूल करीब 250 निराश्रित बच्चों का सहारा भी बना हुआ है। बच्चों के रहने के लिए आवास की व्यवस्था भी इसी स्कूल में है। आपको बता दें कि राजकीय पूर्व माध्यमिक विद्यालय देहरा को उत्तराखंड के सबसे पुराने स्कूलों में शुमार किया जाता है। बताया जाता है कि साल 1816 में इसकी स्थापना पलटन बाजार में की गई थी। उस वक्त इसे तहसीली मिडल स्कूल के नाम से जाना जाता था। आगे पढ़िए संघर्ष की कहानी।

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साल 1953 में इस स्कूल को राजपुर रोड पर शिफ्ट किया गया था। साल 2008 तक इस स्कूल में बच्चों की संख्या घटकर 16 हो गई थी। इसमें भी हैरान करने वाली बात ये थी कि उन 16 में से सिर्फ 5 बच्चे ही स्कूल आते थे। इसी दौरान हुकुम सिंह उनियाल का ट्रांसफर कालसी से इस स्कूल में हुआ। बस...ये ही वक्त था कि हुकुम सिंह उनियाल ने इस स्कूल को बचाने का वादा अपने आप से कर दिया। इसकी शुरुआत उन्होंने घर घर जाकर की, अभिभावकों से मिले और बच्चों को स्कूल भेजने को कहा। जब बच्चों ने स्कूल जाना शुरू किया तो हुकुम सिंह आसपास के गांवों की तरफ भी गए और लोगों को शिक्षा के लिए जागरूक किया। एक दिन उनकी नज़र सड़क पर भटकते निराश्रित बच्चों पर गई, तो दिल पसीज किया। उन्होंने अपने मन में ऐसे गरीब बच्चों को पढ़ाने के संकल्प लिया। कभी 5 बच्चों वाले इस स्कूल में आज करीब 500 से ज्यादा बच्चे पढ़ रहे हैं। करीब करीब 250 बच्चे ऐसे हैं, जिनका इस दुनिया में कोई नहीं। आगे जानिए कि कैसे इस मुहिम के साथ बाकी लोगों ने जुड़ना शुरू किया।

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जब इस स्कूल में कुछ नहीं तो हुकुम सिंह उनियाल ने अपने रिश्तेदारों से 4 लाख से ज्यादा का कर्ज लिया। इससे निराश्रित बच्चों के लिए राशन, बिस्तर और शौचालय की व्यवस्था की गई। इस काम में उनका परिवार भी उनके सात जुटा। आपको जानकर हैरानी होगी कि उन्होंने अपनी पत्नी को रसोइया का जिम्मा दे दिया, जिससे बच्चों के लिए अच्छे खाने की व्यवस्था हो। ये ही नहीं इसके बाद उन्होंने कॉलेज में पढ़ रही बेटी को इस स्कूल का वार्डन बनने की जिम्मेदारी दे दी। कभी जरूरत पढ़ी तो अपना वेतन और मां पेंशन को भी गरीब बच्चों के लिए झोंक दिया। कहते हैं कि कि अगर आप दिल से किसी के लिए कुछ अच्छा चाहो तो हर हाल में वो काम पूरा होता है। इस मुहिम को सफल बनाने के लिए हुकुम सिंह उनियाल कुछ लोगों से और स्वयं सेवी संस्थाओं से भी मिले। राजपुर रोड स्थित रामकृष्ण मिशन सहयोग के लिए आगे आया। साल 2011 से आसरा ट्रस्ट भी जुड़ा और हर महीने इस स्कूल में बच्चों के भोजन और इलाज के लिए आर्थिक मदद दी जाती है। वास्तव में अगर पूरे उत्तराखंड में ऐसे शिक्षक हों तो प्रदेश की तस्वीर बदल जाए।