उत्तराखंड mangseer bagwal of budakedar the culture of uttarakhand

बूढ़ाकेदार की 'मंगसीर बग्वाल', 500 साल पुराना 'माधोसिंह भंडारी की जीत' का उत्सव

उत्तराखंड... वीरों की भूमि। यहाँ के वीर भड पूरी दुनिया में अपनी अलग ही पहचान और सम्मान रखते हैं। अपने वीरों की विजय गाथाएं उत्तराखंडी गर्व के साथ सैकड़ों सालों से गाते और सुनाते आ रहे हैं। ऐसी ही एक परंपरा है "मंगसीर बग्वाल"।

मंगसीर बग्वाल: mangseer bagwal of budakedar the culture of uttarakhand
Image: mangseer bagwal of budakedar the culture of uttarakhand (Source: Social Media)

: उत्तराखंड... वीरों की भूमि। यहाँ के वीर भड पूरी दुनिया में अपनी अलग ही पहचान और सम्मान रखते हैं। अपने वीरों की विजय गाथाएं उत्तराखंडी गर्व के साथ सैकड़ों सालों से गाते और सुनाते आ रहे हैं। ऐसी ही एक परंपरा है "मंगसीर बग्वाल"। उत्तराखंड में घनसाली के बूढ़ाकेदार में पिछले 500 सालों से मंगसीर बग्वाल मनाई जाती है। यहाँ दिन में 'बग्वाल मेला' होता है तो रात को वीर माधो सिंह भंडारी की याद में बग्वाल यानि की दीपावली मनाई जाती है। उत्तराखंडी केलेंडर में ये मंसीर का महिना होता है तो इस ख़ास बग्वाल को 'मंगसीर बग्वाल' कहा जाता है। तीन दिन के इस मेले में देश-विदेश के कई लोग आते हैं और यहाँ आकर आस्था के रंग में सरोबार हो जाते हैं। बग्वाल मेले में स्थानीय लोग भैलो खेलकर देर तक छोटी बग्वाल मनाते हैं। कहते हैं दीपावली के एक महीने के बाद मनाई जाने वाली इस मंगसीर बग्वाल की शुरुवात वीर माधो सिंह भंडारी ने की थी।

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मान्यता है कि गढ़वाल नरेश की अगुवाई में तिब्बती लुटेरों के साथ बहुत लम्बे समय तक युद्ध चला था। इस युद्ध में कुमायूं और गढ़वाल के योद्धाओं ने एक साथ मिलकर उत्तराखंड की रक्षा की थी। कुमायूं से गुरु कैलापीर ने और गढ़वाल से वीर माधो सिंह भंडारी ने युद्ध की बागडोर संभाली थी। युद्ध के कारण माधो सिंह भंडारी नवंबर की दीपावली नहीं मना पाये थे। मान्यता है कि गुरु कैलापीर ने वीर माधो सिंह को दीपावली को उसी तारिख को अगले महीने बग्वाल के रूप में मनाने ने की बात कही थी। इसके बाद से 'मंगसीर बग्वाल' शुरू शुरू हुई। उत्तराखंड में ये परंपरा 500 साल पहले से चली आ रही है। तीन दिन तक चलने वाले इस मेले में दूर-दूर से मुख्य रूप से धियाण (बहु-बेटियां) आती हैं, घर से दूर रहने वाले लोग भी इस वक्त घर आते हैं। बूढ़ाकेदारनाथ और गुरु कैलापीर से सुखी रहने की कामना करते हैं।

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उत्तरकाशी के नौगांव, पुरोला, मोरी, टिहरी जनपद के थत्युड , देहरादून के चकराता, कालसी, हिमांचल के कुल्लू, शिमला, सिरमौर, में दीपावली के ठीक एक माह बाद मंगसिर बग्वाल का आयोजन किया जाता है। उत्तरकाशी में साल 2007 से स्थानीय लोगों की पहल पर आजाद मैदान में इस आयोजन को बाडाहाट की बग्वाल के नाम से किया जाता है। यहाँ गढ़भोज में पर्यटक और अन्य लोग गढवाली पारम्परिक खाने का भी आनंद लेते हैं। इस साल गढ़भोज, गढ़ बाजणा, गढ़ बाजार, गढ़ संग्रहालय, गढ़ भाषण, गढ़ निबंध, गढ़ चित्रण, गढ़ फैशन शो, वर्ततोड (रस्साकस्सी), मुर्गा झपट बग्वाल का प्रमुख आकर्षण है। वहीं भैलों, सामूहिक रांसी, तांदी नृत्य के साथ मंगसीर बग्वाल मनाई जा रही है।

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