उत्तराखंड उत्तरकाशीearthquake in uttarkashi uttarakhand

उत्तरकाशी में भूकंप के झटके, डर के मारे घरों से बाहर निकले लोग

अब सवाल ये है कि क्या उत्तराखंड के लिए जो बातें कही जा रही हैं, क्या वो सच साबित हो सकती हैं ? उत्तरकाशी की धरती भूकंप के झटकों से डोली है।

उत्तराखंड: earthquake in uttarkashi uttarakhand
Image: earthquake in uttarkashi uttarakhand (Source: Social Media)

उत्तरकाशी: उत्तराखंड के लिए बार बार कहा जाता है कि कभी भी यहां कोई बड़ा भूकंप आ सकता है। इससे पहले कई बार भूगर्भ वैज्ञानिक बता चुके हैं कि उत्तराखंड पर 8 रिक्टर स्केल तक का भूकंप आ सकता है। कुछ वक्त पहले ही उत्तराखंड में एक भूकंप आया था। इस बीच उत्तरकाशी के बड़कोट क्षेत्र में एक बार फिर से भूकंप के झटके महसूस किए गए हैं। बताया जा रहा है कि सुबह करीब 6.23 बड़कोट क्षेत्र में भूकंप आ गया। हालांकि भूकंप छोटा सा था और रिक्टर स्केल पर इसकी तीव्रता 3 मापी गई। बताया जा रहा है कि इस भूकंप का केंद्र यमुना नगर हरियाणा में दर्ज किया गया है। उत्तरकाशी के जिला आपदा प्रबंधन अधिकारी देवेंद्र पटवाल ने इस बारे में मीडिया से बातचीत की और बताया सुबह बड़कोट में कुछ लोगों ने भूकंप के झटके महसूस करने की खबर ही थी।

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देवेंद्र पटवाल ने बताया कि इसके बाद इसकी जानकारी IMD को दी गई। आइएमडी ने बताया कि भूकंप के झटके की तीव्रता रिक्टर स्केल पर 3 मापी गई है। झटका हल्का था और वजह से दर्ज नहीं हो सका था। आपको बता दें कि कुछ दिन पहले ही एक रिपोर्ट सामने आई थी। इस रिपोर्ट में बताया गया था कि उत्तराखंड में धरती के नीचे ऊर्जा का जबरदस्त भंडार बन रहा है और ये ऊर्जा कभी भी बडे़ भूकंप के रूप में सामने आ सकती है। सबसे ज्यादा लॉकिंग जोन चंपावत, टिहरी-उत्तरकाशी क्षेत्र, धरासू बैंड और आगराखाल में पाए गए हैं। इसलिए सावधान रहने की बेहद जरूरत है। वैज्ञानिकों का साफ कहना है कि ये ऊर्जा 8 रिक्टर स्केल तक के विनाशकारी भूकंप में तब्दील हो सकती है। फिलहाल ये वैज्ञानिकों की रिसर्च है, जो कि आने वाले वक्त के लिए एक चेतावनी की तरह साबित हो सकती है।

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नेशनल सेंटर फॉर सिस्मोलॉजी की रिपोर्ट पर भी ध्यान देने की जरूरत है। रिपोर्ट में साफ तौर पर बताया गया है कि देहरादून से टनकपुर के बीच करीब 250 किलोमीटर क्षेत्रफल की जमीन सिकुड़ती जा रही है। हर साल करीब 18 मिलीमीटर की दर से धरती सिकुड़ती जा रही है। सेंटर के निदेशक डॉ.विनीत गहलोत का कहना है कि साल 2013 से 2018 के बीच देहरादून के मोहंड से टनकपुर के बीच करीब 30 जीपीएस यानी ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम लगाए गए थे।जीपीएस के माध्यम से पता चला है कि ये पूरा भूभाग हर साल 18 मिलीमीटर की दर से सिकुड़ता जा रहा है। इस सिकुड़न की वजह से धरती के भीतर ऊर्जा का का जबरदस्त भंडार बन रहा है। वैज्ञानिकों का कहना है कि ये ऊर्जा ही चिंता का सबसे बड़ा सबब है, जो कभी भी सात या फिर आठ रिक्टर स्केल के भूकंप के रूप में बाहर निकल सकती है।