उत्तराखंड devidhura temple of uttarakhand

देवभूमि का देवीधुरा मंदिर, यहां आज भी होता है बग्वाल युद्ध..रक्त से लाल होती है धरती

उत्तराखंड में एक ऐसा शक्ति पीठ है, जहां कभी नर बलि की परंपरा थी। अब इस बलि की परंपरा को बग्वाल में बदल दिया गया है। जानिए क्यों ?

uttarakhand temple: devidhura temple of uttarakhand
Image: devidhura temple of uttarakhand (Source: Social Media)

: शक्तिपीठ माँ वाराही का मंदिर जिसे देवीधुरा के नाम से भी जाना जाता हैं। देवीधुरा में बसने वाली “माँ वाराही का मंदिर” 52 पीठों में से एक माना जाता है। आषाढ़ी सावन शुक्ल पक्ष में यहां गहड़वाल, चम्याल, वालिक और लमगड़िया खामों के बीच बग्वाल (पत्थरमार युद्ध) होता है। देवीधूरा में वाराही देवी मंदिर शक्ति के उपासकों और श्रद्धालुओं के लिये पावन और पवित्र स्थान है। ये क्षेत्र देवी का “उग्र पीठ” माना जाता है। चन्द राजाओं के शासन काल में इस सिद्ध पीठ में चम्पा देवी और ललत जिह्वा महाकाली की स्थापना की गई थी। तब “लाल जीभ वाली महाकाली" को महर और फर्त्यालो द्वारा बारी-बारी से हर साल नियमित रुप से नरबलि दी जाती थी। माना जाता है कि रुहेलों के आक्रमण के समय कत्यूरी राजाओं द्वारा इस मूर्ति को घने जंगल के बीच एक भवन में स्थापित कर दिया गया था।

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धीरे-धीरे इसके चारो ओर गांव स्थापित हो गये और ये मंदिर लोगों की आस्था का केन्द्र बन गया। पौराणिक कथाओं के अनुसार ये स्थान गुह्य काली की उपासना का केन्द्र था। जहां किसी समय में काली के गणों को प्रसन्न करने के लिये नरबलि की प्रथा थी। इस प्रथा को कालान्तर में स्थानीय लोगों द्वारा बन्द कर दिया गया। देवीधूरा के आस-पास निवास करने वाले लोग वालिक, लमगड़िया, चम्याल और गहडवाल खामों के थे, इन्हीं खामों में से हर साल एक व्यक्ति की बारी-बारी से बलि दी जाती थी। इसके बाद नर बलि बंद कर दी गयी और “बग्वाल”की परम्परा शुरू हुई। इस बग्वाल में चार खाम उत्तर की ओर से लमगड़िया, दक्षिण की ओर से चम्याल, पश्चिम की ओर से वालिक, पूर्व की ओर से गहडवाल के रणबांकुरे बिना जान की परवाह किये एक इंसान के रक्त निकलने तक युद्ध लड़ते हैं।

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भले ही तीन साल से बग्वाल फल-फूलो से खेली जा रही हो उसके बावजूद भी योद्धा घायल होते हैं और उनके शरीर रक्त निकलता दिखता है। माँ वाराही देवी के मुख्य मंदिर में तांबे की पेटिका में मां वाराही देवी की मूर्ति है। मान्यता है कि कोई भी व्यक्ति मूर्ति के दर्शन खुली आँखों से नहीं कर सकता है। देवीधुरा का नैसर्गिक सौन्दर्य भी मोहित करने वाला है। साथ ही विश्व प्रसिद्ध बगवाल मेले को देखने दूर-दूर से सैलानी देवीधुरा पहँचते हैं। आइए बग्वाल मेले का ये नज़ारा देख लीजिए।

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