उत्तराखंड नैनीतालHorse library for rural children in Nainital

उत्तराखंड में घोड़े की पीठ पर चलती फिरती लाइब्रेरी, गांव गांव में जलाई जा रही शिक्षा की अलख

आज के वक्त में जब लोग अपने बच्चों को मोबाइल-लैपटॉप थमाकर उनकी क्रिएटिविटी खत्म कर रहे हैं, ऐसे वक्त में इन युवाओं की कोशिश वाकई सराहनीय है। पढ़िए रिपोर्ट

Uttarakhand Horse Library: Horse library for rural children in Nainital
Image: Horse library for rural children in Nainital (Source: Social Media)

नैनीताल: इरादे अगर नेक हों तो राहें मिल ही जाती हैं। अब नैनीताल में ही देख लें।

Horse library for rural children in Nainital

यहां के युवाओं ने दूरस्थ क्षेत्रों के छात्रों की सुविधा के लिए शानदार काम किया है। इन्होंने घोड़े की पीठ पर चलती-फिरती लाइब्रेरी बनाई है। आपने कई तरह की लाइब्रेरी के बारे में सुना होगा, लेकिन नैनीताल की घोड़ा लाइब्रेरी अपने आप में अनोखी है। जिले के वो गांव, जो आज भी संचार और सड़क नेटवर्क से दूर हैं, वहां ये घोड़ा लाइब्रेरी छात्रों की सबसे अच्छी दोस्त साबित हो रही है। कोटाबाग क्षेत्र के युवाओं ने हिमोत्थान व संकल्प यूथ फाउंडेशन संस्था की मदद से घोड़ा लाइब्रेरी की सेवा शुरू की है। जिन इलाकों में बारिश के कारण रास्ते बंद हैं, उन जगहों पर इस लाइब्रेरी के माध्यम से छात्रों को शिक्षा से जोड़ा जा रहा है। इसी कड़ी में घोड़ा लाइब्रेरी कोटाबाग के दूरस्थ गांव बाघिनी पहुंची। सेवा की शुरुआत करने वाले युवाओं ने बताया कि उनका प्रयास बच्चों को साहित्य व नैतिक शिक्षा से जोड़ना है। लाइब्रेरी के माध्यम से बच्चों को सामान्य ज्ञान, प्रेरक कहानियां और नैतिक शिक्षा संबंधी पुस्तकें दी जा रही हैं।

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सेवा शुरू करने वाले शुभम बधानी ने बताया कि वह हिमोत्थान संस्था के लाइब्रेरी कार्डिनेटर व संकल्प यूथ फाउंडेशन संस्था के अध्यक्ष हैं। 10 जून से दूरस्थ गांवों में बारिश से आपदा जैसे हालात बने हुए हैं। वो चाहते हैं कि बच्चे साहित्य और नैतिक शिक्षा से जुड़ें, इसलिए उन्होंने अपने साथियों संग घोड़ा लाइब्रेरी शुरू की है। इस मुहिम को गांव वालों का भी साथ मिल रहा है। ग्रामीणों की मदद से उन्हें एक घोड़ा मिला है। जिसके जरिए वो जलना, तोक व आलेख गांव में अब तक 300 से ज्यादा पुस्तकें बांट चुके हैं। शिक्षा अधिकारियों ने भी नैनीताल जिले के युवाओं की कोशिश को सराहा है। आज के वक्त में जब लोग अपने बच्चों को मोबाइल-लैपटॉप थमाकर उनकी क्रिएटिविटी खत्म कर रहे हैं, ऐसे वक्त में इन युवाओं की कोशिश वाकई सराहनीय है। उम्मीद है कि प्रदेश के दूसरे क्षेत्रों में भी बच्चों को साहित्य-शिक्षा से जोड़ने के लिए ऐसे ही कारगर प्रयास किए जाएंगे।