देहरादून: उत्तराखंड के हिमालयी क्षेत्र में ग्लोबल वॉर्मिंग के खतरनाक प्रभाव काफी समय से महसूस हो रहे हैं। वर्षण के पैर्टन में आए बदलाव की वजह से ग्लेशियरों के पिघलने की रफ्तार बढ़ी है।
effect of global warming on uttarakhand
इस ओर अब भी ध्यान नहीं दिया तो आने वाले दिनों में हमें कई तरह की आपदाओं का सामना करना पड़ेगा। वाडिया हिमालय भू-विज्ञान संस्थान के वैज्ञानिकों ने अपने दो शोधों के जरिए गढ़वाल हिमालय में 20 साल में ग्लेशियरों के पतले होने और इनके प्रवाह वेग में कमी का खुलासा किया है। वैज्ञानिकों का कहना है कि उच्च हिमालय क्षेत्रों में बर्फबारी में कमी और बारिश होने से ग्लेशियरों के पिघलने की रफ्तार बढ़ी है। वर्षण पैटर्न में बदलाव से ग्लेशियरों को पोषण यानि हिम नहीं मिल पा रहा। शोध में 23 ग्लेशियरों का अध्ययन किया गया। जिसमें पता चला कि ग्लेशियरों की मोटाई तेजी से कम हो रही है। इसकी वजह ग्लोबल वॉर्मिंग, तापमान में बढ़ोतरी, वर्षण पैटर्न में बदलाव और ग्लेशियर सतह पर बनी झीलों में आया बदलाव है। गढ़वाल हिमालय के ग्लेशियर के प्रवाह वेग में तेजी से परिवर्तन आ रहा है। आगे पढ़िए
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कम बर्फबारी से ग्लेशियर के प्रवाह की गति पिछले 30 सालों में औसतन 25 प्रतिशत तक कम हुई है। कम बर्फबारी से ग्लेशियरों को पर्याप्त बर्फ नहीं मिल रही। जिससे ग्लेशियरों के पतले होने की औसत दर में 2000 से 2020 के बीच करीब तीन गुना वृद्धि हुई है। मोटाइ कम होने से ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। शोध में ये भी पता चला है कि गंगोत्री ग्लेशियर केदारनाथ के चौराबाड़ी कंपेनियन से दो गुना अधिक तेजी से पिघल रहा है। गंगोत्री ग्लेशियर 1935 से 2022 की 87 साल की अवधि में 1700 मीटर पीछे जा चुका है। गौमुख में समुद्र तल से 3950 मीटर की ऊंचाई पर स्थित गंगोत्री ग्लेशियर के पीछे हटने की दर असमान है। शोध के दौरान अलकनंदा, भागीरथी, मंदाकिनी घाटियों में कुल 205 ग्लेशियरों के सतही प्रवाह को भी समझने का प्रयास किया गया। दोनों शोध वाडिया निदेशक डॉ. कालाचांद साईं के नेतृत्व में किए गए। वाडिया हिमालय भू-विज्ञान संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. राकेश भांबरी ने कहा कि हिमनद का स्वभाव गतिशील होना है। गुरुत्वाकर्षण से ऊपरी क्षेत्रों से बर्फ धीरे-धीरे नीचे आती है, लेकिन तापमान बढ़ने और वर्षा के पैटर्न में बदलाव से हिमनदों को बर्फ नहीं मिल रही। जो कि खतरे का संकेत है। संस्थान की ओर से किए गए शोध साइंस ऑफ द टोटल एन्वायरमेंट व जियोलॉजिकल सोसायटी ऑफ इंडिया में प्रकाशित हुए हैं।