देहरादून: फूल संक्रांति या फूलदेई को प्रतिवर्ष बालपर्व के रूप में मनाये जाने के सम्बन्ध में एक बड़ा आदेश जारी हुआ है।
Uttarakhand govt decision about phooldei
उत्तराखण्ड राज्य में प्रतिवर्ष फाल्गुन/चैत्र माह में मनाये जाने वाली फूल संक्रांति का त्यौहार पूरे विश्व में एक अनूठा लोकपर्व है। यह त्योहार हमारी संस्कृति और परंपरा को दर्शाता है। राज्य के पहाड़ी जिलों में बसंत ऋतु के समय मनाये जाने वाले फूल संक्रांति या फूलदेई पर्व जीवन में एक नई उमंग लेकर आता है। फूलदेई लोकपर्व की पारम्परिक महत्ता को देखते हुए सरकार ने एक बड़ा फैसला लिया है। इस लोकपर्व को प्रतिवर्ष बालपर्व के रूप में मनाये जाने का निर्णय लिया गया है। सरकार की ओर से शिक्षा विभाग को यह आदेश दिए गए हैं कि हर वर्ष एक फूलदेई को बाल पर्व के रूप में मनाया जाएग। फूल संक्रांति / फूलदेई के अवसर पर प्रतिवर्ष समस्त जिलों के विद्यालयों में बालपर्व के रूप में सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किये जाएंगे।
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फूलदेई चैत्र संक्रांति के दिन मनाया जाता है क्योंकि हिंदू पंचांग के अनुसार चैत्र मास ही हिंदू नववर्ष का पहला महीना होता है। इस त्योहार को खासतौर से बच्चे मनाते हैं और घर की देहरी पर बैठकर लोकगीत गाने के साथ ही घर-घर जाकर फूल देते हैं। उत्तराखंड के कई अन्य लोक पर्व की तरह यह भी प्रकृति को समर्पित है और यह दर्शाता है कि उत्तराखंड के लोग प्रकृति के कितने करीब हैं। बहुत से इलाके जैसे कुमाऊं और गढ़वाल में एक या दो नहीं बल्कि पूरे आठ दिनों तक भी फूलदेई मनाया जाता है। वहीं इसके अतिरिक्त कुछ इलाकों में लोग चैत्र के पूरे महीने ही फूलदेई मनाते हैं।