देहरादून: पलायन को कैसे मात देनी है, यह कोई पहाड़ के महिलाओं से सीखे। अब देहरादून की रहने वाली महिला किसान गीता उपाध्याय को ही देख लें। जिन्होंने मशरूम की खेती को स्वरोजगार का जरिया बनाया और आज वह दूसरी महिलाओं के लिए प्रेरणा स्रोत बन गई हैं।
Dehradun Nakronda Geeta Upadhyay Mushroom production
गीता उपाध्याय नकरौंदा गांव में रहती हैं। वह गांव में अजय स्वालंबन केंद्र का संचालन करती हैं। इसके माध्यम से गीता सब्जी उत्पादन, पशुपालन और मत्स्य पालन करती हैं। मशरूम उत्पादन भी उनकी आमदनी का बड़ा जरिया है। गीता कहती हैं कि पहाड़ में मशरूम उत्पादन रोजगार का अच्छा जरिया बन सकता है। इसके जरिए आप 90 दिनों में लागत का दोगुना मुनाफा हासिल कर सकते हैं। 90 दिनों में 500 बैग्स से 10 क्विंटल मशरूम तक का उत्पादन हो जाता है। यह बाजार में 150 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बिकती है। इस तरह मशरूम उत्पादन में काफी फायदा है। गीता मशरूम उत्पादन से डेढ़ से 2 लाख रुपये तक की आमदनी कर रही हैं। मशरूम की खेती के लिए गीता ने दो कमरे बनाए हुए हैं। आगे पढ़िए
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यहां आपको मशरूम की खूबियां भी बताते हैं। मशरूम कम कैलोरी वाली सब्जी है जो कि पोषक तत्वों से भरपूर है। मशरूम का सेवन वजन को कंट्रोल में रखता है। डायबिटीज, कोलेस्ट्रॉल और ब्लड प्रेशर को भी कंट्रोल करता है। गीता कहती हैं कि पहाड़ में संसाधनों की कमी नहीं है, जरूरत है तो सिर्फ स्वाबलंबन के अवसरों को अपनाने की। महिलाओं को भी खेती से मुंह मोड़ने की बजाय, इसे अपनाने की जरूरत है। स्वरोजगार के लिए हिम्मत के साथ परिवार का सहयोग भी चाहिए। गीता अपने पति दीपक उपाध्याय के साथ मिलकर खेती और मशरूम उत्पादन से अच्छा मुनाफा कमा रही हैं। Dehradun की Geeta Upadhyay ने Mushroom production को स्वरोजगार का जरिया बनाया और आज वह दूसरी महिलाओं के लिए प्रेरणा स्रोत बन गई हैं।