देहरादून: जब भी सेना का जिक्र होता है तो उत्तराखंड का नाम गौरव से लिया जाता है। आजादी से पहले हो या बाद में, उत्तराखंड का नाम हमेशा सेना के गौरव से जुड़ा रहा है।
Rashtriya Indian Military College Dehradun
हर साल उत्तराखंड के करीब नौ हजार युवा सेना में शामिल होते हैं। आईएमए, राष्ट्रीय इंडियन मिलिट्री कॉलेज (आरआइएमसी) और सैनिक स्कूल जैसे संस्थान भी उत्तराखंड का गौरव बढ़ा रहे हैं। देहरादून में स्थित राष्ट्रीय इंडियन मिलिट्री कॉलेज (आरआइएमसी) का भी देशसेवा में अहम योगदान रहा है। आरआईएमसी को राष्ट्रीय रक्षा अकादमी खड़कवासला, अधिकारी प्रशिक्षण अकादमी चेन्नई और भारतीय सैन्य अकादमी देहरादून जैसे संस्थानों के लिए नर्सरी ऑफ लीडरशिप कहा जाता है। दून में गढ़ी कैंट के समीप आरआईएमसी संस्थान स्थित है। रक्षा मंत्रालय के अधीन सेना प्रशिक्षण कमान के माध्यम से कॉलेज संचालित होता है।
Dehradun RIMC History
13 मार्च 1922 को आरआईएमसी का उद्घाटन तत्कालीन प्रिंस ऑफ वेल्स बाद में किंग एडवर्ड ने किया था। आरआईएमसी अब तक देश को छह सेना प्रमुख और दो वायुसेना प्रमुख देने के साथ ही सैकड़ों सैन्य अधिकारी दे चुका है। यह देश के प्रतिष्ठित सैन्य शिक्षण संस्थानों में से एक है और दून घाटी का गौरव है। आरआईएमसी अपनी समृद्ध विरासत को समेटे हुए है। जनरल केएस थिमैया, जनरल जीजी बेवूर, जनरल वीएन शर्मा, एयर चीफ मार्शल एनएस सूरी, जनरल एस पद्मनाभन, एयर चीफ मार्शल बीएस धनोआ सहित कई लोग आरआईएमसी के छात्र रहे। आरआईएमसी अभी तक देश को चार सेना प्रमुख व दो वायुसेना प्रमुख देने के साथ ही 41 सेना कमांडर और समकक्ष व 163 ले.जनरल रैंक के अधिकारी दे चुका है। देश की आजादी से पहले यहां से 159 कैडेट पास हो चुके हैं, जबकि आजादी के बाद से अब तक 2067 कैडेट पास आउट हुए हैं। यहां से पढ़कर निकले जनरल आरएस थिमैया दूसरे विश्व युद्ध के ऐसे पहले और आखिरी भारतीय अफसर हैं, जिन्होंने एक ब्रिगेड को कमांड किया था। पहले परमवीर चक्र विजेता मेजर सोमनाथ शर्मा भी यहीं से पढ़े थे।
Dehradun RIMC 100 years
अहम बात यह है कि सौ वर्ष पुराने मिलिट्री कॉलेज में पहली बार बेटियां भी पढ़ेंगी। सौ साल पूरे करने के अवसर पर संस्थान में तीन दिवसीय शताब्दी समारोह आयोजित किया जा रहा है। रविवार को राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (सेनि) ने शताब्दी वर्ष का शुभारंभ किया। इस दौरान उन्होंने आरआईएमसी के सौ साल पूरे होने पर डाक टिकट का प्रथम आवरण भी जारी किया। साथ ही आरआईएमसी के अनुभवों पर आधारित पुस्तक बाल-विवेक और पूर्व कैडेटों की लिखी पुस्तक वैलर एंड विज्डम का भी विमोचन किया। बतौर मुख्य अतिथि राज्यपाल ने कहा कि आरआईएमसी लगातार सौ साल से देश सेवा में योगदान दे रहा है। आरआईएमसी के कैडेट, अधिकारी और टीम के साझे आत्मविश्वास, क्षमता और समर्पित भाव ने संस्थान को देश में सर्वोच्च शिक्षण संस्थान के रूप में प्रतिष्ठा दिलाई है।