देहरादून: uttarakhand assembly election का रंग जमने लगा है। चुनाव के दौरान पार्टियां अपने-अपने तरीकों से पार्टी को जिताने के लिए टिकट तो बांट देती हैं, लेकिन यह नहीं देखतीं कि संबंधित प्रत्याशी स्वच्छ छवि का है या नहीं। ऐसे प्रत्याशियों को वोट देने की बजाय मतदाता अक्सर नोटा का ऑप्शन चुनते हैं। साल 2017 के विधानसभा चुनाव की बात करें तो नोटा (इनमें से कोई नहीं) का विकल्प चुनने में पहाड़ के लोग मैदान वालों से काफी आगे रहे। इससे समझा जा सकता है कि नोटा को लेकर पहाड़ के लोगों में जागरूकता आ रही है। 2017 के विधानसभा चुनाव में उत्तराखंड की 70 विधानसभा में रहने वाले 50 हजार से अधिक लोगों ने किसी प्रत्याशी को वोट देने के बजाय नोटा का विकल्प चुना। बता दें कि साल 2012 तक जितने भी चुनाव हुए, उनमें मतदाता को केवल प्रत्याशी चुनने का ही अधिकार था। उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव में पहली बार नोटा का विकल्प 2017 में प्रयोग में लाया गया।
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वोटिंग प्रक्रिया समाप्त होने के बाद जब चुनाव परिणाम घोषित किया गया तो आंकड़ा चौंकाने वाला था। इस दौरान 50408 लोगों ने नोटा विकल्प का इस्तेमाल किया था। गढ़वाल मंडल के थराली और रुद्रप्रयाग सीट पर हजारों लोगों ने नेताओं के झूठे वादों के विरोध स्वरूप नोटा विकल्प का प्रयोग कर अपनी मंशा जताई थी। इसी तरह कुमाऊं के कई विधानसभा क्षेत्र नोटा के इस्तेमाल में अव्वल रहे। पहाड़ की बागेश्वर, लोहाघाट, कपकोट, सोमेश्वर, पिथौरागढ़ और चंपावत विधानसभा में मतदाताओं ने किसी प्रत्याशी को चुनने के बजाय नोटा को चुना। पहाड़ की इन प्रत्येक विधाससभा में 1000 से पौने 2 हजार वोट नोटा को पड़े थे। नोटा की वजह से कई प्रत्याशी पिछड़ गए थे। साल 2022 के uttarakhand assembly election में भी यही स्थित रही तो नोटा बड़े-बड़े दावे करने वाले राजनीतिक दलों का गणित बिगाड़ सकता है।