उत्तराखंड चम्पावतUpdate on Dalit Bhojan Mata Case in Sukhidhang Champawat

क्या उत्तराखंड में दलित भोजनमाता विवाद फर्जी था? अब सामने आ रही है बड़ी बातें

उत्तराखंड दलित भोजनमाता विवाद ने अब नया मोड़ लिया है। आइए इस बारे में आपको भी कुछ खास बातें बताते हैं। पढ़िए...

Champawat Dalit Sawarn Case: Update on Dalit Bhojan Mata Case in Sukhidhang Champawat
Image: Update on Dalit Bhojan Mata Case in Sukhidhang Champawat (Source: Social Media)

चम्पावत: उत्तराखंड दलित भोजनमाता विवाद …ये किस्सा शुरु हुआ चंपावत के सूखीढांग क्षेत्र से। यहां का एक सरकारी स्कूल पिछले कुछ दिनों से लगातार सुर्खियों में है। खबरें हैं कि यहां के सवर्ण छात्रों ने दलित भोजनमाता के हाथ से बना खाना खाने से इनकार कर दिया। मामला तब और बिगड़ गया, जब दलित महिला को नौकरी से हटा दिया गया। इस मामले को लेकर देशभर में तीखी प्रतिक्रिया देखने को मिली। चम्पावत के सूखीढांग में हुई तथाकथित छुआछूत की इस घटना से उत्तराखंड की बदनामी भी हुई, लेकिन दरअसल इस पूरे विवाद की जो असली वजह थी, उस पर चर्चा करने की किसी ने जहमत नहीं उठाई।

गलत नियुक्ति का था मामला... छुआछूत का नहीं

क्षेत्र के अभिभावकों का कहना है कि उनका विरोध भोजनमाता की जाति नहीं, बल्कि गलत नियुक्ति को लेकर था। इस मामले में नियो पॉलिटिको की टीम ने पूरे मसले को लेकर स्कूल के प्रिसिंपल, जो कि खुद अनुसूचित जाति से आते हैं और एसएमसी यानि विद्यालय प्रबंधन समिति के सदस्यों से बात की। एसएमसी भोजन माता की नियुक्ति में अहम रोल अदा करता है। टीम की पड़ताल में पता चला कि पूरा विवाद भोजनमाता कि नियुक्ति को लेकर था। दरअसल स्कूल में दलित भोजनमाता की नियुक्ति कभी हुई ही नहीं थी। खबर के मुताबिक प्रिंसिपल प्रेम सिंह ने खुद ये बात स्वीकारी है। जानकारी के मुताबिक भोजन माता की नियुक्ति के लिए सबसे पहले अक्टूबर में विज्ञप्ति निकाली गई थी। आगे पढ़िए...

ये भी पढ़ें:

भोजनमाता पद के लिए कुल 11 महिलाओं ने आवेदन किए, जिनमें पुष्पा भट्ट भी थीं। पुष्पा भट्ट गरीब महिला है, जो कि पति से अलग रहकर किसी तरह दिन गुजार रही हैं। खबर के मुताबिक, पुष्पा भट्ट का बेटा इसी स्कूल में कक्षा 7 में पढ़ता है।

तो.. स्कूल के प्रिंसिपल ने खेला ये खेल ?

महिला की दयनीय स्थिति को देखते हुए एसएमसी ने पुष्पा भट्ट का चयन किया था, लेकिन कहा जा रहा है कि स्कूल के प्रिंसिपल ने खेल कर दिया। बताया जा रहा है कि प्रधानाचार्य पुष्पा भट्ट को नहीं रखना चाहते थे, इसलिए दूसरी विज्ञप्ति निकाल दी। नियो पॉलिटिको की टीम से पुष्पा भट्ट का कहना है कि दूसरी विज्ञप्ति में कहा गया कि नौकरी में दलित महिला को प्राथमिकता दी जाएगी। यही नहीं बिना एसएमसी की सहमति के सुनीता नाम की महिला को नियुक्ति दे दी गई।

नियुक्ति के लिए नियम ताक पर ?

शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने भी इस बात को माना है कि दलित भोजनमाता कि नियुक्ति के लिए नियमों को ताक पर रखा गया। इसी वजह से नियुक्ति रद्द कर दी गई थी। प्रधानाचार्य ने भी कहा है कि विवाद अवैध नियुक्ति को लेकर था। पुष्पा भट्ट गांव में रहकर मुश्किल से जीवनयापन करती है। उनको हटाए जाने से पैरेंट्स नाराज थे। इस पूरी घटना ने न सिर्फ चंपावत बल्कि उत्तराखंड की भी खूब बदनामी कराई। अब सवाल ये है कि क्या सच में इस मामले को जबरन तूल दिया गया? वक्त आने पर ये भी पता चल जाएगा।