पिथौरागढ़: इन दिनों उत्तराखंड में लगातार बादल फटने की घटनाएं हो रही हैं। चमोली से लेकर पिथौरागढ़ तक ऐसा कोई पहाड़ी जिला नहीं, जहां पिछले दिनों बादल फटने की घटनाएं न हुई हों। रविवार को धारचूला में बादल फटने के बाद तबाही का सैलाब आ गया, जिसने कई लोगों की जान ले ली, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि पहाड़ में आखिर इस तरह की घटनाएं क्यों होती हैं। पहाड़ी इलाकों में बादल आखिर फटते क्यों हैं? ऐसे ही कई सवाल हमारे मन में भी थे, जिनका जवाब हम वैज्ञानिकों से जानने की कोशिश करेंगे। पहले तो ये जान लेत हैं कि आखिर बादल फटना होता क्या है? जीबी पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के मौसम विज्ञानी डॉ. आरके सिंह बताते हैं कि अगर किसी एक जगह पर एक घंटे के दौरान 10 सेमी यानी 100 मिमी से ज्यादा बारिश हो जाए तो इसे हम बादल फटना कहते हैं। इसे क्लाउड बर्स्ट या फ्लैश फ्लड भी कहा जाता है। आगे पढ़िए
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मानसून की गर्म हवाएं ठंडी हवाओं के संपर्क में आती हैं तो बहुत बड़े आकार के बादलों का निर्माण होता है। यही वजह है कि हिमालयी क्षेत्रों में ऐसी घटनाएं ज्यादा होती हैं। मौसम विज्ञानी विक्रम सिंह कहते हैं कि बादल फटना आमतौर पर गरज के साथ होता है। ऐसा तब होता है जब काफी नमी वाले बादल एक जगह ठहर जाते हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक पानी से भरे बादलों को पहाड़ों की ऊंचाई आगे नहीं बढ़ने देती। एक साथ घनत्व बढ़ जाने से एक क्षेत्र के ऊपर तेज बारिश होने लगती है। हालांकि कुछ सतर्कता बरती जाए तो बादल फटने से होने वाले नुकसान से बचा जा सकता है। राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने इसे लेकर कई सुझाव दिए हैं। यूएसडीएमए के अनुसार लोगों को ढलान पर मजबूत जमीन वाले क्षेत्रों में रहना चाहिए। घाटियों की बजाय सुरक्षित जगहों पर घर बनाएं। अवैज्ञानिक तरीके से होने वाला निर्माण भी तबाही के लिए जिम्मेदार होता है। बादल फटने की घटना का पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता। लेकिन बहुत ज्यादा बारिश को लेकर मौसम विभाग अलर्ट जारी कर सकता है। जरूरत है कि लोग इन अलर्ट्स को गंभीरता से लें और सुरक्षा के उपाय करें।