उत्तराखंड चमोलीStory of Panch Kedar of Uttarakhand

देवभूमि के पंचकेदार...यहां शिव के किन-किन रूपों की होती है पूजा? आप भी जानिए

केदारनाथ धाम में भगवान शिव बैल की पीठ की आकृति-पिंड के रूप में पूजे जाते हैं। इसी तरह रुद्रनाथ में भगवान शिव के मुख, मदमहेश्वर में नाभि, तुंगनाथ में भुजा और कल्पेश्वर में शिव की जटा रूप में पूजा होती है।

Panchkeedar of Uttarakhand: Story of Panch Kedar of Uttarakhand
Image: Story of Panch Kedar of Uttarakhand (Source: Social Media)

चमोली: देवभूमि उत्तराखंड के कण-कण में भगवान शिव का वास है। भोलेनाथ श्रद्धा के देव हैं। श्रावण मास के पहले दिन से ही भगवान आशुतोष का जलाभिषेक प्रारंभ गया है। कोरोना संकट के चलते इस बार शिवालयों में लोगों की आवाजाही पर रोक है, लेकिन राज्य समीक्षा आपके लिए शिवधामों की खास श्रृंखला लेकर आया है। जिसके जरिए आप घर बैठे भगवान आशुतोष के दर्शन का फल प्राप्त कर सकते हैं। पहली कड़ी में हम हिमालय के अंचल में स्थित पंचकेदार धामों के बारे में जानेंगे। पंचकेदार में पहला स्थान भगवान केदारनाथ का है। भगवान शिव के धाम केदारनाथ के कपाट श्रद्धालुओं के दर्शन के लिए खुल गए हैं। केदारनाथ का मंदिर 3593 फीट की ऊंचाई पर बना हुआ है। श्री केदारनाथ को द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है। इतनी ऊंचाई पर मंदिर का निर्माण कैसे कराया गया, इसे लेकर आज भी कोई स्पष्ट जानकारी नहीं है। आगे जानिए

  • केदारनाथ मे ऐसे होती है पूजा

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    माना जाता है कि इसकी स्थापना आदिगुरु शंकराचार्य ने की। केदारनाथ धाम में भगवान शिव बैल की पीठ की आकृति-पिंड के रूप में पूजे जाते हैं। मान्यता है कि जब भगवान शंकर बैल के रूप में अंतर्धान हुए, तो उनके धड़ से ऊपर का हिस्सा काठमाण्डू में प्रकट हुआ, जहां भगवान भोलेनाथ पशुपतिनाथ के रूप में विराजमान हैं।

  • रुद्रनाथ में मुख की पूजा

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    इसी तरह भगवान शिव का मुख रुद्रनाथ में, नाभि मदमहेश्वर में, भुजाएं तुंगनाथ में और जटाएं कल्पेश्वर में प्रकट हुईं। इसलिए इन चार स्थानों सहित श्री केदारनाथ को पंचकेदार कहा जाता है। यहां भगवान शिव के भव्य मंदिर बने हुए हैं। पंचकेदार की स्थापना का संबंध महाभारत काल और पांडवों से जुड़ा माना जाता है। कहते हैं कि महाभारत के युद्ध में विजयी होने के बाद पांडव अपने सगे-संबंधियों की हत्या के पाप से मुक्ति पाना चाहते थे।

  • मदमहेश्वर में नाभि, तुंगनाथ में भुजा

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    इसके लिए वो भगवान शिव का आशीर्वाद हासिल करना चाहते थे, लेकिन भगवान शिव पांडवों से नाराज थे। इसलिए जब पांडव काशी गए तो भगवान शिव वहां से अंतर्धान हो गए। पांडव भगवान शिव को खोजते हुए हिमालय तक आ पहुंचे। तब भगवान शिव बैल का रूप धारण कर पांडवों को छकाते रहे। वो बैल बनकर पशुओं के झुंड में शामिल हो गए। शिव की इस लीला पर पांडवों को शक हो गया।

  • कल्पेश्वर में जटाओं की पूजा

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    तभी भीम ने पशुओं के झुंड को रोकने के लिए अपना विशाल रूप धारण कर दो पहाड़ों पर पैर फैला दिए। सारे पशु भीम के पैरों के नीचे से गुजर गए, लेकिन भगवान शिव पैर के नीचे से जाने को तैयार नहीं हुए। भीम बलपूर्वक इस बैल रूपी शिव पर झपटे, लेकिन बैल भूमि में अंतर्धान होने लगा। तब भीम ने बैल की पीठ का भाग पकड़ लिया। कहते हैं कि पांडवों की दृढ़ इच्छाशक्ति देखकर भगवान भोलेनाथ प्रसन्न हुए और उन्हें तत्काल दर्शन देकर पांडवों को पाप से मुक्त कर दिया। तब से केदारनाथ धाम में भगवान शिव बैल की पीठ की आकृति-पिंड के रूप में पूजे जाते हैं।