पौड़ी गढ़वाल: श्रीनगर...गढ़वाल की पुरानी राजधानी और आज का एजुकेशन हब। एक वक्त था जब ये शहर कला, शिक्षा और संस्कृति के विकास के लिए जाना जाता था, पर अब यही शहर नशाखोरी के चलते सुर्खियों में है। देहरादून की तरह श्रीनगर के युवा भी नशे की गिरफ्त में हैं। हालात बिगड़ रहे हैं, माता-पिता भी बच्चों की बुरी लत के आगे बेबस नजर आते हैं। नशे से बर्बादी की कई कहानियां इस शहर की फिजाओं में गूंज रही हैं। शहर के एक लड़के को माता-पिता ने इंटर के बाद पढ़ने के लिए देहरादून भेजा था। सोचा बच्चा एमबीए कर कुछ बन जाएगा। लड़का कुछ बना तो नहीं, लेकिन स्मैक की लत के चंगुल में जरूर फंस गया। परिवारवाले उसे घर ले आए। नशामुक्ति केंद्र भेज दिया, पर लड़का सुधरा नहीं। घरवाले नशा करने से रोकते तो उनके साथ मारपीट करता। खास बात ये है कि परिवार में 3 बहनों के बाद बेटा हुआ था। इसीलिए ना तो लाड़-प्यार में कोई कमी रही और ना ही डिमांड पूरी करने में। इसी खुली छूट ने लड़के को गलत संगत में डाल दिया।
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आज हालात ये हैं कि परिवारवालों ने उसे संपत्ति से बेदखल कर दिया है। ऐसा ही कुछ एक अन्य महिला के साथ भी हुआ। महिला सब्जी बेचकर घर चलाती थी। पर महिला का बेटा मां के संघर्ष को समझा नहीं। महिला का बेटा नशे की गिरफ्त में फंसा और अब पोता भी नशेड़ी बन गया है। नशे के चलते पोते की मानसिक स्थिति बिगड़ गई है। एक बार तो उसने नशे के लिए पैसे ना मिलने पर दादी को कमरे में बंद कर के आग भी लगा दी थी। पड़ोसी समय पर ना पहुंचे होते तो महिला की मौत हो जाती। ये सिर्फ उदाहरण भर हैं। श्रीनगर में ऐसे कई परिवार हैं जो बेटों की नशे की लत के चलते तबाह हो चुके हैं। युवा स्मैक के नशे की गिरफ्त में हैं। श्रीनगर पुलिस 40 से ज्यादा युवाओं की काउंसलिंग कर रही है। ऐसे भी कई मामले हैं जिनमें युवाओं ने स्मैक के लिए घर का सामान तक बेच दिया। घरवालों को भी इस बारे में तब पता चलता है, जब पुलिस उन्हें पकड़कर ले जाती है। पुलिस क्षेत्र में नशा विरोधी अभियान चला रही है। युवाओं की काउंसलिंग कर रही है, पर नशे का मर्ज खत्म नहीं हो रहा।