उत्तराखंड देहरादूनuttarakhand martyr krishn bahadur thapa

जय देवभूमि: पिता कारगिल में शहीद हुए, बेटे ने BBA की पढ़ाई छोड़ी और फौज में भर्ती हुआ

11 जुलाई 1999 को कारगिल में शहीद हुए उत्तराखंड के वीर सपूत का बेटा आज फौज का हिस्सा हैं...जानिए इनकी कहानी

उत्तराखंड न्यूज: uttarakhand martyr krishn bahadur thapa
Image: uttarakhand martyr krishn bahadur thapa (Source: Social Media)

देहरादून: विजय दिवस के मौके पर पूरा देश कारगिल युद्ध में शहीद हुए सपूतों को याद कर रहा है। इन्हीं वीर सपूतों में से एक थे देहरादून के जवान नायक कृष्ण बहादुर थापा, जिन्होंने ऑपरेशन विजय के दौरान अपनी जान गंवा दी थी। कृष्ण बहादुर थापा आज इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन उनका बेटा मयंक आज भी पिता की दिखाई राह पर चल रहा है। मयंक भारतीय सेना का हिस्सा है, देशप्रेम की शिक्षा मयंक को पिता से विरासत में मिली। जब बड़े हुए तो उन्होंने तय कर लिया था कि पिता की तरह देश की सेवा करेंगे। मयंक थापा देहरादून के सेलाकुई के रहने वाले हैं। साल 2012 में मयंक बीबीए कर रहे थे, वो चाहते तो अच्छी जॉब कर सकते थे। एक सुरक्षित भविष्य बना सकते थे, पर पिता के शौर्य की कहानियां उन्हें सेना में खींच लाईं। बीबीए के दौरान जब सेना में भर्ती खुली तो मयंक ने भी उसमें हिस्सा लिया और पहले ही प्रयास में सफल हो गए। अब मयंक सेना का हिस्सा हैं।

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मयंक कारगिल में शहीद हुए नायक कृष्ण बहादुर थापा के बेटे हैं। कृष्ण बहादुर थापा 11 जुलाई 1999 को ऑपरेशन विजय के दौरान बटालिक सेक्टर को मुक्त कराते हुए शहीद हो गए थे। उस वक्त उनका बड़ा बेटा मयंक केवल 7 साल का था। मयंक का पूरा बचपन पिता की यादों के सहारे ही बीता और जब वो बड़े हुए तो उन्होंने तय कर लिया की अब फौज में भर्ती होना है। ऐसा ही हुआ भी। मयंक अब गोरखा राइफल यूनिट का हिस्सा हैं। इस वक्त उनकी पोस्टिंग कश्मीर के श्रीनगर में है। मयंक बताते हैं कि जब उनके पिता शहीद हुए थे, तब वो बहुत छोटे थे। बड़े हुए तो पिता की बहादुरी के किस्सों ने उन्हें देश सेवा के लिए प्रेरित किया। साल 2012 में वो बीबीए की पढ़ाई छोड़कर सेना में भर्ती हो गए। यही उनके शहीद पिता और मां का सपना था। उन्हें खुशी है कि पिता ने जो राह दिखाई और मां ने जो सीख दी उन्होंने उस पर अमल किया। आज वो सेना का हिस्सा होने पर गर्व महसूस करते हैं।