उत्तराखंड Story of mahendra bahuguna of pauri garhwal

ऑस्ट्रेलिया में संवारी देवभूमि की विरासत, महेन्द्र बहुगुणा ने घर को बना दिया 'मिनी गढ़वाल'

ऑस्ट्रेलिया के पर्थ में रहने वाले महेंद्र बहुगुणा ने भले ही पहाड़ छोड़ दिया, लेकिन पहाड़ ने इनको नहीं छोड़ा...जानिए इनकी कहानी

उत्तराखंड: Story of mahendra bahuguna of pauri garhwal
Image: Story of mahendra bahuguna of pauri garhwal (Source: Social Media)

: ऐसे वक्त में जब कि पलायन से पहाड़ खाली होते जा रहे हैं...हमारी बोली-भाषा खतरे में है...उस दौर में कुछ ऐसे लोग भी हैं, जो पहाड़ में भले ही ना रह रहे हों, लेकिन पहाड़ को जी जरूर रहे हैं...ऐसे ही लोगों में शामिल हैं महेंद्र बहुगुणा जो कि ऑस्ट्रेलिया के पर्थ में रहते हैं...बहुगुणा जी ने भले ही पहाड़ छोड़ दिया, लेकिन पहाड़ ने इनको नहीं छोड़ा। जब परदेश में पहाड़ की याद सताने लगी तो इन्होंने अपने आशियाने को ही 'मिनी गढ़वाल' बना डाला। अब तो ऑस्ट्रेलिया में रहने वाले भारतीय ही नहीं, बल्कि वहां बसे अंग्रेज भी महेंद्र की बदौलत उत्तराखंड की संस्कृति को जानने-समझने लगे हैं। महेंद्र बहुगुणा का परिवार मूलरूप से पौड़ी के खिर्सू ब्लॉक के पोखरी गांव का रहने वाला है। 12 साल पहले ये परिवार ऑस्ट्रेलिया के पर्थ में जाकर बस गया, लेकिन पहाड़ी अपने पहाड़ को भला कैसे भूल सकता है। पहाड़ से प्रेम करने वाले महेंद्र बहुगुणा और उनके परिवार ने अपने घर को बिल्कुल पहाड़ी घर जैसा रूप दे डाला। इस घर में गेहूं पीसने की जंदरी है, मसाला पीसने के लिए सिल-बट्टा है...है ना कमाल की बात।

ये भी पढ़ें:

यह भी पढें - बदरीनाथ धाम में मौजूद है ये चमत्कारी पौधा..इस पर रिसर्च के बाद वैज्ञानिक भी हैरान
उनकी पत्नी रुचि काला बहुगुणा और दोनों बेटे शिवम और रचित घर में गढ़वाली में ही बातचीत करते हैं। बाड़ी, थिंच्वाणी, फाणू जैसे पारंपरिक पहाड़ी व्यंजन अब भी उनके खाने का अहम हिस्सा हैं। इस पहाड़ी परिवार की बदौलत ऑस्ट्रेलिया के रहने वाले विदेशी भी पहाड़ी खान-पान का स्वाद चख रहे हैं। महेंद्र कभी ताज होटल के काबिल शेफ थे, लेकिन रोजी-रोटी की खातिर उन्हें देश छोड़, विदेश में बसना पड़ा। महेंद्र के घर आने-जाने वाले विदेशी मेहमानों का वो भैजी समन्या! (पहाड़ी अंदाज में अभिवादन) संबोधन के साथ स्वागत करते हैं। तीज-त्योहारों पर तो उनके घर की रौनक देखने लायक होती है, गढ़वाली गानों से घर गूंज उठाता है और आस-पास रहने वाले विदेशी पड़ोसी भी इन गीतों पर खूब झूमते हैं। भई धन्य हैं महेंद्र बहुगुणा जैसे लोग...जो कि विदेश जाकर भी अपनी संस्कृति...अपनी परंपराओं को नहीं भूले...ऐसे लोगों को देखकर ना सिर्फ अच्छा लगता है, बल्कि भेड़चाल के इस दौर में अपनी जड़ों से हमेशा जुड़े रहने की सीख भी मिलती है।