उत्तराखंड Story of kalimath

देवभूमि का वो शक्तिपीठ...जहां शिला पर मौजूद हैं महाकाली के पैरों के निशान

कहते हैं कि यहां महाकाली साक्षात् रूप में विराजमान रहती हैं। आपको भी यहां आकर अद्भुत अहसास होगा।

उत्तराखंड: Story of kalimath
Image: Story of kalimath (Source: Social Media)

: देवभूमि उत्तराखंड में मां आदिशक्ति का वास है। सदियों से यहां मां भगवती के अलग-अलग रूपों की पूजा होती आई है। रुद्रप्रयाग जिले के कालीमठ में मां आदिशक्ति के दैवीय पुंज की ऊर्जा आज भी महसूस की जा सकती है। कालीमठ मंदिर भारत के प्रमुख शक्तिपीठों में से एक है। तंत्र और साधना करने वालों के लिए इस मंदिर का महत्व कामख्या और मां ज्वालामुखी के मंदिरों समान है। कालीमठ मां दुर्गा के काली स्वरूप को समर्पित है। यहां मौजूद मंदिर में श्रद्धालु किसी प्रतिमा की नहीं, बल्कि एक पवित्र कुंड की पूजा करते हैं। ये कुंड सालभर रजतपट श्रीयंत्र से ढंका रहता है। केवल शारदीय नवरात्रि की अष्टमी के दिन कुंड के पट खोले जाते हैं और देवी की पूजा की जाती है। पूजा केवल मध्यरात्रि में होती है, उस वक्त मंदिर में केवल मुख्य पुजारी मौजूद रहते हैं। कहा जाता है कि इस कुंड में साक्षात मां काली का वास है।

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स्कंदपुराण में भी इस मंदिर का जिक्र मिलता है। कालीमठ मंदिर के पास 8 किलोमीटर चढ़ाई के बाद एक दिव्य चट्टान के दशर्न होते हैं, जिसे श्रद्धालु काली शिला के रूप में जानते हैं। कहा जाता है कि मां दुर्गा शुंभ, निशुंभ और रक्तबीज दानव का वध करने के बाद यहां 12 साल की कन्या के रूप में प्रकट हुईं थीं। यहां आज भी देवी काली के पैरों के निशान देखे जा सकते हैं। यहां देवी-देवताओं के 64 यंत्र भी स्थापित हैं। इस जगह पर आज भी 64 योगिनियां विचरण करती हैं। कालीमठ में महाकाली, श्री महालक्ष्मी और श्री महासरस्वती के तीन भव्य मंदिर है। कहा जाता है कि कालीमठ में ही कवि कालिदास ने मां काली की आराधना कर ज्ञान का वरदान हासिल किया था। नवरात्र में यहां मां के दर्शनों के लिए श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। श्रद्धा से मांगी गई मनोकामना मां काली जरूर पूरी करती हैं।