उत्तराखंड Story behind bhairav garhi

भैरवगढ़ी: यहां विराजते हैं गढ़वाल मंडल के रक्षक ‘बाबा भैरवनाथ’

प्रकृति की गोद में बसे इस धाम के दर्शन के लिए दूर दूर से श्रद्धालु आते हैं। आइए भैरवगढ़ी की बारे में आपको बताते हैं।

उत्तराखंड: Story behind bhairav garhi
Image: Story behind bhairav garhi (Source: Social Media)

: यूं तो भगवान शिव को कई नामों से पुकारा जाता है। लेकिन उनके 15 अवतारों में एक नाम भैरवगढ़ी का आता है। ये मंदिर देवभूमि उत्तराखंड में स्थित है। भैरवगढ़ी लैंसडाउन से लगभग 17 किमी की दूरी पर कीर्तिखाल की पहाड़ी पर मौजूद है। यहां कालनाथ भैरव की पूजा नियमित रूप से की जाती है। कीर्तिखाल पहाड़ी पर स्थित कालनाथ भैरव को सभी चीजें काली पंसद होती है और उन्हीं की पंसद पर कालनाथ भैरव के लिए मंडवे के आटे का प्रसाद बनाया जाता है। मंडवे के आटे से बने इस प्रसाद को रोट कहते हैं। भैरवगढ़ी को गढ़वाल मंडल का रक्षक माना जाता है। भैरव के साधक और पुजारी आज भी भैरवगढ़ी चोटी पर जाकर सिद्धि प्राप्त करते हैं। कहा जाता है कि यहां आकर हर किसी की मुराद पूरी होती है। अगर मुराद पूरी हो जाए, तो यहां श्रद्धालु चांदी का छत्र चढ़ाते हैं।

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भैरव महिमा से प्रभावित होकर गोरखों ने चढ़ाया ताम्रपत्र
गढ़ों की मान्यता को अगर देखा जाए तो गढ़वाल में एक गढ़ भैरवगढ़ भी है. जिसका वास्तविक नाम लंगूरगढ़ है। लांगूल पर्वत पर मौजूद होने के कारण इसका नाम लंगूरगढ़ पड़ा. सन् 1791 तक लंगूरगढ़ को बहुत शक्तिशाली माना जाता था। इस जगह को जीतने के लिए दो वर्षों तक घेराबंदी भी हुई लेकिन 28 दिनों के संघर्ष के बाद गोरखा पराजित हुए और लंगूरगढ़ से वापस चले गए। इन गोरखों में से एक थापा नाम के गोरखा ने भैरव की शक्ति से प्रभावित होकर वहां ताम्रपत्र चढ़ाया था। इसका वजन 40 किलो बताया जाता है। भैरवगढ़ी में स्थित ये मंदिर भैरव की गुमटी पर बना है, जिसके बाहर बायें हिस्से में शक्तिकुंड है। इस मंदिर में नवविवाहित जोड़े भी मनौतियां मांगने पहुंचते हैं। इस धाम का प्राकृतिक सौंदर्य भी पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है। चोटी पर होने के कारण बर्फ से लदी पहाड़ियां और हरियाली पर्यटकों को शांति का भी अनुभव कराती है।