उत्तराखंड movie review of kedarnath

मूवी रिव्यू: केदारनाथ के तीर्थ पुरोहित की बेटी और मंसूर का रोमांस, बेकार सी लव स्टोरी

अगर केदारनाथ फिल्म को रिव्यू दिया जाए तो 5 में से दो स्टार ही काफी हैं। ना कहानी ढंग की बन पाई और ना ही आपदा का दर्द सही तरह से दिखाया।

उत्तराखंड: movie review of kedarnath
Image: movie review of kedarnath (Source: Social Media)

: बॉलीवुड के सिर पर भूत सवार है। किसी भी कहानी में प्यार की कहानी जोड़ने का भूत इनके सिर से शायद कभी नहीं उतरेगा। ये ही वजह है कि भारतीय सिनेमा अब तक किसी बड़े मुकाम को छू नहीं पाया। आज पूरी दुनिया में साइंस फिक्शन, रियल स्टोरी, प्रेरणादायक सच्ची घटनाओं, युद्ध की कहानियों पर फिल्म बनती हैं, तो बॉलिवुड प्यार से ऊपर उठ ही नहीं पाया। इसी तरह से तैयार हुई है केदारनाथ फिल्म। उत्तराखंड में आई केदारनाथ आपदा को कहां से कहां जोड़ दिया। नतीजा ये हुआ कि ना तो प्यार की कहानी सही ढंग से बन पाई और ना ही आपदा का वो दौर सही ढंग से दिख पाया। दिल-दिमाग पर छा जाने में ये फिल्म पूरी तरह से नाकाम है। ना जाने किस जल्दबाजी में अभिषेक कपूर ने ये फिल्म तैयार की है। फिल्म में ना तो इश्क की गहराई है और न ही केदारनाथ त्रासदी का दर्द। जानिए इसकी कहानी क्या है।

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बेमन से बनाई फिल्म लगती है केदारनाथ। कहानी केदारनाथ धाम की है, जहां मंसूर नाम का शख्स पिट्ठू का काम करता है। इस बीच केदारनाथ के ही पंडितजी की बिटिया मुक्कू यानी सारा अली खान है। मंसूर और मुक्कू को इश्क हो जाता है लेकिन मंसूर का धर्म अलग है। मुक्कू केदारनाथ के सबसे बड़े पंडितजी की बिटिया है तो ये रिश्ता नामुमकिन है। बीच में मुक्कू और मंसूर के बीच कुछ ऐसे दृश्य भी दिखाए गए हैं, जो आंखों को अच्छे नहीं लगते। आखिरकार मुक्कू की शादी हो जाती है और मंसूर की बुरी तरह पिटाई हो जाती है। सबकुछ बिखर जाता है और फिर लंबे इंतजार के बाद आती है केदारनाथ आपदा। फिल्म में ऐसा कुछ भी नहीं है, जिससे आप उम्मीद करें। पहला हाफ बहुत सुस्त और दूसरा कोई उम्मीद नहीं जगाता।

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डायरेक्शन बेहद कमजोर है और कहानी कुछ भी नया नहीं है। फिल्म ना तो प्रेम कहानी के तौर पर छू सकी और ना ही केदारनाथ त्रासदी को दिखा सकी। सुशांत और सारा अली खान की एक्टिंग अच्छी है। सारा को देखकर लगता है कि आने वाले वक्त में वो मंझी हुई कलाकार बन सकती हैं। बाकी सब नॉर्मल है। बॉलीवुड को इन कहानियों से ऊपर उठकर कुछ सोचना चाहिए। राज्य समीक्षा की तरफ से फिल्म को 5 में से 2 स्टार

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