उत्तराखंड story of tarkeshwar temple uttarakhand

देवभूमि के इस मंदिर में विदेशों से आते भक्त, यहां जागृत रूप में निवास करते हैं महादेव

आज हम आपको उत्तराखंड के ऐसे मंदिर के बारे में बता रहे हैं, जिसे भगवान शिव की आरामगाह कहा गया है। चलिए ताड़केश्वर धाम।

tarkeshwar temple: story of tarkeshwar temple uttarakhand
Image: story of tarkeshwar temple uttarakhand (Source: Social Media)

: देवभूमि उत्तराखंड को महादेव कैलाशपति शिव की तपस्थली कहा जाता है। यहां जगह जगह पर भगवान शिव के अलौकिक मंदिर और उनसे जुड़ी कहानियां साबित करती हैं भगवान शिव इसी धरा पर निवास करते हैं। आज हम आपको एक ऐसे धाम के बारे में बता रहे हैं, जिसकी ख्याति दश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी है। हर साल यहां विदेशों से भई सैकड़ों भक्त आते हैं और भगवान शिव की महिमा का गुणगान करते हैं। पौड़ी जनपद के जयहरीखाल विकासखण्ड के अन्तर्गत लैन्सडौन डेरियाखाल – रिखणीखाल मार्ग पर स्थित चखुलाखाल गांव। इस गांव से 4 किलोमीटर की दूरी पर पर्वत श्रृंखलाओं के बीच एक बेहद ही खूबसूरत जगह में मौजूद है ताड़केश्वर भगवान का मंदिर। देवदार के करीब 4 किलोमीटर के जंगल के बीच में मौजूद ताड़केश्वर धाम अध्यात्मिक चेतना और उत्कृष्ट साधना का केंद्र कहा जाता है।

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समुद्र तल से करीब छह हजार फीट की ऊंचाई पर मौजूद इस मंदिर को भगवान शिव की आरामगाह कहा जाता है। स्कंद पुराण के केदारखंड में इस जगह का वर्णन किया गया है। कहा गया है कि ये ही वो जगह से जहां विष गंगा और मधु गंगा उत्तर वाहिनी नदियों का उद्गम स्थल है। इस मंदिर की कहानी भी आपको बताएंगे लेकिन यहां की सबसे खास बात है मंदिर परिसर में मौजूद चिमटानुमा और त्रिशूल की आकार वाले देवदार के पेड़। ये पेड़ श्रद्धालुओं की आस्था को और भी ज्यादा मजबूत करते हैं। कहा जाता है कि ताड़कासुर दैत्य का वध करने के बाद भगवान शिव ने इसी जगह पर आकर विश्राम किया। विश्राम के दौरान जब सूर्य की तेज किरणें भगवान शिव के चेहरे पर पड़ीं, तो मां पार्वती ने शिवजी के चारों ओर देवदार के सात वृक्ष लगाए। ये विशाल वृक्ष आज भी ताड़केश्वर धाम के अहाते में मौजूद हैं।

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ये भी कहा जाता है कि इस जगह पर करीब 1500 साल पहले एक सिद्ध संत पहुंचे थे। कहा जाता है कि गलत काम करने वालों को संत फटकार लगाते थे। क्षेत्र के लोग उन संत को शिवजी का अंश मानते थे। संत की फटकार यानी ताड़ना के चलते ही इस जगह का नाम ताड़केश्वर पड़ा। यहां तक पहुंचने के लिए कोटद्वार पौड़ी से चखुलियाखाल तक जीप-टैक्सी जाती रहती हैं। यहां से पांच किमी. पैदल दूरी पर ताड़केश्वर धाम है। ये एक ऐसा मंदिर है, जहां हर साल देश-विदेश से श्रद्धालु पहुंचते हैं। यहां की खूबसूरती बेमिसाल है और इसे देखकर हर कोई मंत्रमुग्ध हो जाता है। खासतौर पर श्रावण मास पर तो यहां श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। कभी वक्त लगे तो आप भी ताड़केश्वर धाम जरूर आइए।