उत्तराखंड नैनीतालstory of kiran belwal of haldwani

देवभूमि की किरन बेलवाल..पति की मौत के बाद भी हारी नहीं, खेती से संवारी बच्चों की किस्मत

कहते हैं कि कोशिश करने वाले की कभी हार नहीं होती। ऐसी ही हैं उत्तराखंड की किरन बेलवाल। जिन्होंने पति के निधन के बाद भी हार नहीं मानी।

kiran belwal: story of kiran belwal of haldwani
Image: story of kiran belwal of haldwani (Source: Social Media)

नैनीताल: हाथ पर हाथ धरे बैठने से कुछ भी नहीं मिलता। मेहनतकश होना ज़रूरी है और भाग्य भी हमेशा मेहनती लोगों का ही साथ देता है। देवभूमि उत्तराखंड की एक महिला किरन बेलवाल को हमारा सलाम है, जिन्होंने अपनी किस्मत अपने हाथ से लिखी। वरना एक दौर ऐसा भी था जब किरन के पति का निधन हो गया था और परिवार पूरी तरह से टूट चुका था। दिल्ली में पली बढ़ी किरन की शादी हल्द्वानी के गौलापार चोरगलिया के लाखनमंडी गांव के अजय बेलवाल से हुई थी। किरन ने कभी जिंदगी में हाथ में पावड़ा तक नहीं पकड़ा था। साल 2003 में उनके पति अजय बेलवाल का निधन हो गया और पूरे परिवार की सड़क पर आने की नौबत आ गई। किरन चाहती तो वापस दिल्ली जाकर कोई और नौकरी कर सकती थी लेकिन उन्होंने पति की विरासत को ही आगे बढ़ाने का फैसला लिया।

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बच्चों की परवरिश के लिए किरन ने फावड़ा हाथ में उठा लिया। छोटे बच्चों को घर में अकेला छोड़कर सर्दी की रातों में खेतों में पानी लगाना, जंगली जानवरों की डरावनी आवाजों का सामना करना किरन के लिए रोजमर्रा का काम हो गया था। इसके बाद भी किरन ने हार नहीं मानी। पांच एकड़ खेती की कमान उन्होंने खुद संभाली। जरूरत के वक्त उन्होंने खुद ही ट्रैक्टर चलाना भी सीख लिया। आज उनके बच्चे बड़े हो गए हैं। अपनी खेती बाड़ी और मेहनत की कमाई से किरन ने बच्चों को कभी भी किसी चीज की कमी नहीं होने दी। दोनों बच्चों के लिए उनकी मां से बढ़कर कोई नहीं। जिस किरन को खेती और किसानी का कभी ज्ञान ही नहीं था, आज वो 5 एकड़ खेतों की कमान खुद संभाल रही हैं। सिर्फ कमान नहीं संभाल रही बल्कि अच्छी खासी कमाई भी कर रही हैं, जिससे परिवार का पेट पल जाता है।

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पति के निधन के बाद छोटे बच्चों की जिम्मेदारी सिर पर थी , ऊपर से परिवार का भी पेट पालना था। आम तौर पर एक महिला इस बोझ तले दब जाती है। किरन को सलाम करने का मन इसलिए करता है क्योंकि खेतों में ट्रैक्टर चलाने का काम अक्सर पुरुष ही करते हैं लेकिन किरन ने पुरुषों के प्रभुत्व वाले इस काम को भी अपनाया। खेतों में उगाए अन्न को बाज़ार तक पहुंचाना, उसका मोल-भाव करना भी किरन को अच्छी तरह से आता है। आज किरन खुद कहती हैं कि खेती का काम भले ही मेहनत का है लेकिन जब खेतों में अपनी लहलहाती फसल दिखती है तो सारी थकान दूर हो जाती है। आज जब किरन अपने बच्चों को कॉलेज जाती देखती हैं तो पुराने वक्त को याद कर कहती हैं ‘मेहनत कभी भी बेकार नहीं जाती।’ सलाम देवभूमि की इस नारी को।