उत्तराखंड pashan devi mandir in nainital

उत्तराखंड का पाषाण देवी मंदिर, यहां के पवित्र जल से दूर होते हैं त्वचा संबंधी रोग

क्या आप कभी देवभूमि उत्तराखंड के पाषाण देवी मंदिर गए हैं ? अगर नहीं तो एक बार आप जरूर जाएं। आपको अलग ही अहसास होगा।

uttarakhand temple: pashan devi mandir in nainital
Image: pashan devi mandir in nainital (Source: Social Media)

: देवभूमि उत्तराखंड में कदम कदम पर मौजूद देवस्थान ये साबित करने के लिए काफी हैं कि आस्था से इस धरती के लोगों का सदियों पुराना नाता है। देवी-देवताओं की इस धरती में हजारों मंदिर अपनी अलग ही कहानी समेटे हुए हैं। इन्ही मंदिरों में से कुछ मंदिरों की कहानियां हम आप तक पहुंचा चुके हैं। आज हम आपको पाषाण देवी मंदिर के बारे में कुछ खास जानकारियां दे रहे हैं। पाषाण देवी मंदिर नैनीताल के लोगों के साथ साथ पूरे देश से आने वाले भक्तों के लिए खासा महत्व रखता है। नवरात्रि के पावन पर्व में यहां भक्तों का तांता लगा रहता है। खास तौर पर नवरात्रि के नवें दिन इस मंदिर का महत्व और भी बढ़ जाता है, क्यो कि इस मंदिर में मां भगवती के सभी 9 स्वरूपों के दर्शन एक साथ होते हैं। मां के नौ रूपों के दर्शन के लिए भक्त दूर-दूर से आते हैं।

ये भी पढ़ें:

यह भी पढें - उत्तराखंड की मां ज्वालपा देवी, जहां अखंड ज्योति के दर्शन से ही हर मनोकामना पूरी होती है
नैनी झील के किनारे चट्टान पर मां भगवती की कुदरती आकृति बनी हुई है। वहीं नौ पिंडी को मां भगवती के नौ स्वरूप माना जाता है। मंदिर में माता को सिंदूर का चोला पहनाया जाता है। साथ ही मान्यता है कि माता की पादुकाएं नैनीताल की झील के अंदर हैं। इसलिए झील के जल को कैलास मानसरोवर की तरह पवित्र माना जाता है। श्रद्धालु इस नैनी सरोवर के जल को अपने घर लेकर जाते हैं। कहा जाता है कि ये इतना पवित्र जल है कि इससे त्वचा से संबंधित तमाम रोग दूर हो जाते हैं। लोक मान्यता है कि जल को घर में रखने से घर में सुख शांति बनी रहती है। मान्यता है कि एक बार एक अंग्रेज अफसर मां पाषाण देवी मंदिर से गुजर रहा था। उसने पास में बने इस छोटे से मंदिर को देखा तो उपहास करने लगा। तभी अचानक उसका घोड़ा बिदक गया और अंग्रेज अफसर घोड़े सहित झील में गिर गया।

ये भी पढ़ें:

यह भी पढें - कालीशिला...देवभूमि का सिद्धपीठ, जहां देवी ने 12 साल की कन्या के रूप में जन्म लिया
जब अंग्रेज अफसर ने मां से क्षमा-याचना मांगी तब जाकर वो आगे बढ़ सका। इसके बाद उसे गलती का एहसास हुआ और स्थानीय महिलाओं के सहयोग से उसने माता को सिंदूर का चोला पहनाया। जिसके बाद से यहां पर मां का श्रृंगार सिंदूरी के चोले से किया जाता है। प्रत्येक मंगलवार और शनिवार और नवरात्रि पर मां को चोली पहनाने की परंपरा है। माना जाता है कि मां को स्नान कराए गए पानी से समस्त त्वचा रोग दूर होते हैं। जल को लेने के लिए दूर-दूर से लोग नैनीताल के इस मंदिर में आते हैं। नवरात्रि में यहां पूजा- अर्चना करने के लिए भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। वास्तव में देवभूमि उत्तराखंड में ऐसे ऐसे पवित्र तीर्थ हैं, जिनके बारे में जानकर और पढ़कर उस अद्भुत दैवीय शक्ति का अहसास होता है।