उत्तराखंड story of kalishila temple uttarakhand

कालीशिला...देवभूमि का सिद्धपीठ, जहां देवी ने 12 साल की कन्या के रूप में जन्म लिया

कहते हैं कि उत्तराखंड के कालीशिला में मां भगवती ने 12 साल की कन्या के रूप में जन्म लिा था और शुंभ निशुंभ का संहार किया था।

kalishila temple: story of kalishila temple uttarakhand
Image: story of kalishila temple uttarakhand (Source: Social Media)

: देवभूमि उत्तराखंड में यूं तो कई मंदिर है जिनकी अपनी मान्यता हैं। इन्हीं में से एक है सिद्धपीठ कालीमठ मंदिर। जिस पर लोगों की अटूट आस्था है और इसी वजह से हर साल बड़ी संख्या में भक्त कालीमठ मां के दर्शनों के लिए पहुंचते हैं। कालीमठ का मंदिर रुद्रप्रयाग जिले की कालीमठ घाटी में स्थित है। मान्यता है कि राक्षसों के आतंक से परेशान देवताओं ने मां भगवती की अराधना और तपस्या की। जिसके बाद मां ने देवताओं ने राक्षसों से मुक्ति दिलाई थी। क्रोध के कारण मां का शरीर काला पड़ गया। मां ने शुंभ-निशुंभ और रक्तबीज का वध किया था और कालीशिला में 12 साल की बालिका के रूप में प्रकट हुई। समुद्र तल से 3463 मीटर की ऊंचाई पर स्थित कालीशिला मंदिर में सालभर लोगों का तांता लगा रहता है। ये मंदिर भारत के प्रमुख सिद्ध और शक्तिपीठों में एक है।

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कालीशिला मंदिर साधना की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। ये स्थान विंध्याचल की मां कामख्या और जालंधर की ज्वाला मां के समान ध्यान और तंत्र के लिए अत्यंत ही उच्च कोटि का कहा जाता है। स्कन्दपुराण के केदारखंड में 62 अध्धाय में मां काली के मंदिर का वर्णन है। कालीमठ मंदिर से 8 किलोमीटर की खड़ी ऊंचाई पर एक दिव्य शिला है जिसे कालीशिला के नाम से जाना जाता है। यहां इस शिला में आज भी देवी काली के पैरों के निशान मौजूद हैं। कालीशीला के बारे में मान्यता है कि मां भगवती ने शुम्भ, निशुम्भ और रक्तबीज दानव का वध करने के लिए कालीशीला में 12 साल की बालिका के रूप धारण किया। कालीशीला में देवी के 64 यन्त्र है। मां दुर्गा को इन्ही 64 यंत्रो से शक्ति मिली थी। कहा जाता है कि इस जगह पर 64 योगिनिया विचरण करती रहती हैं।

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सिद्पीठ कालीमठ से करीब 4 किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई चढ़ने के बाद कालीशिला आता है। इसे भगवती के सबसे ताकतवर और शक्तिशाली मंदिरों में से एक कहा जाता है। स्कंद पुराण के अंतर्गत केदारखंड के बासठवें अध्याय में मां के इस मंदिर का वर्णन है। रुद्रशूल नामक राजा की ओर से यहां शिलालेख स्थापित किए गए हैं जो बाह्मी लिपि में लिखे गए हैं। इन शिलालेखों में भी इस मंदिर का पूरा वर्णन है। इस मंदिर की स्थापना शंकराचार्य ने की थी। यहां मां काली ने रक्तबीज राक्षस का संहार किया था। इसके बाद देवी मां इसी जगह पर अंर्तध्यान हो गई थीं। आज भी यहां पर रक्तशिला, मातंगशिला व चंद्रशिला स्थित है।उत्तराखंड का ये वो शक्तिपीठ है, जिसकी तुलना किसी से नहीं की जा सकती।