उत्तराखंड टिहरी गढ़वालstory of usha devi of tehri garhwal

Video: देवभूमि की उषा देवी..परंपराओं को तोड़ा, हाथ में ढोल थामा और रच दिया इतिहास

देवभूमि की परंपरा को बचाए रखने के लिए एक महिला ने जब हाथ में ढोल थामा तो पुरुषों के वर्चस्व को ही चुनौती मिल गई। आप पहले ये वीडियो जरूर देखिए

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Image: story of usha devi of tehri garhwal (Source: Social Media)

टिहरी गढ़वाल: ये देवभूमि उत्तराखंड नारी शक्ति है..जो अब बंदिशों में कैद रहना नहीं जानती। नाम है उषा देवी, जिनती उम्र 30 साल है। टिहरी जिले के जौनपुर के हटवाल गांव की इस महिला ने ढोल किया और सदियों से चली आ रही परंपरा को तोड़ दिया। ऊषा देवी को अपने क्षेत्र की पहली महिला ढोलवादक का गौरव हासिल है। सिर्फ ढोल ही नहीं बल्कि जागर गाने में भी उषा देवी को महारथ हासिल है। एक दशक पहले तक उषा देवी गांव की महिलाओं के साथ भजन और कीर्तन के कार्यक्रमों में हिस्सा लेती थीं। भजन गाने के साथ साथ वो ढोलक भी बजाती थी और बाद में तबला भी बजाना सीखा। इसी दौरान उषा के मन में ख्याल आया कि जब ढोलक और तबला वो आसानी से बजा सकती हैं, तो आखिरकार ढोल क्यों नहीं ? कहते हैं इरादे मजबूत हों तो जीत का हार आपके स्वागत के लिए तैयार रहता है। ऐसा ही उषा देवी के साथ भी हुआ। इस बात का सबूत ये वीडियो भी है, जो हम आपको दिखा रहे हैं। ये वीडियो देखकर आप उषा देवी को सलाम करेंगे।

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धीरे धीरे उषा देवी घर पर ही ढोल बजाने का अभ्यास करने लगीं। आज पहाड़ी ढोल की हर ताल से उषा वाकिफ हैं, जहां तक कि वो बड़े बड़े मंचों पर बड़े बड़े दिग्गजों को टक्कर देती नजर आती हैं। उषा देवी की तीन संतानें हैं और उन तीनों को उषा देवी ढोल वादन की कला सिखा रही हैं। घर में चूल्हा चौका और खेती बाड़ी करने के साथ साथ उषा ढोल वादन की परंपरा को आगे बढ़ा रही हैं। उषा कहती हैं कि ढोलवादन उनका पारंपरिक व्यवसाय है। हालांकि अब तक महिलाएं इससे दूर रहती थीं लेकिन इस मिथक को तोड़कर वो बाकी महिलाओं के लिए भी संभावनाओं के द्वार खोल रही हैं। उषा देवी का साथ इस काम में उनके पति सुमन दास ने बखूबी दिया। आज सुमन दास शादी समारोहों समेत कई आयोजनों में दमाऊं बजाते हैं तो साथ में उषा देवी ढोल पर थाप देती नज़र आती हैं।

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यकीन मानिए उषा देवी के जागर, मांगल और देवी गीतों की चर्चा जौनपुर प्रखंड समेत पूरे उत्तराखंड में होने लगी है। उषा देवी आठवीं कक्षा तक पढ़ी लिखीं हैं लेकिन आज वो सांस्कृतिक आयोजनों की शान बन गई हैं। बीते महीने देहरादून में एक कार्यक्रम आयोजित किया गया था। इस समारोह में गढ़रत्न नरेंद्र सिंह नेगी जी के अलावा जागर सम्राट प्रीतम भरतवाण भी शामिल थे। उषा देवी को इन सभी के साथ मंच साझा करने का मौका मिला और बकायदा उन्हें सम्मानित भी किया गया। ढोल वादन की परंपरा को बचाए रखने से उषा देवी ने ना सिर्फ नाम कमाया है बल्कि उनकी आर्थिक स्थिति भी मजबूत हुई है। ढोल वादन उनके लिए अब सिर्फ पारंपरिक व्यवसाय ही नहीं, बल्कि कमाई का भी मुख्य जरिया बन गया है। सलाम देवभूमि की ऐसी महिलाओं को जिन्हों परंपराओं को जीवित रखा है।

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